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मेuमहोदये
मूलनक्षत्र दिनवारो मेघाधिप" इति मतं सम्यक् प्रतिमाति । परेषां मताभिप्रायः प्रायो ज्योतिर्विदां गम्यः । वस्तुतस्तु यदपमन्त्रिमस्याधिपानां त्रयाणामेवोपयोगः । तत्फलं स्वेवं गिरधरानन्दे
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यत्र वर्षे नृपो मन्त्री धान्यपञ्चैक एव हि ।
हर्षे युद्धदुर्भिक्षं प्रजामार्यादि जायते ॥ ३०॥ ग्रन्थान्तरे-स्वयं राजा स्वयं मन्त्री स्वयं सहयाधिपो यदा । सदा तोयं न पश्यामि वर्जयित्वा महोदधिम् ॥३१॥ वर्षाधिपतिफलम् –
सूर्ये नृपे स्वल्पजलाः पयोदाः, धान्यं तथाल्पं फलमल्पवृक्षाः । अल्यप्रयोगेषु जनेषु पोडा, चौरानिशङ्का च भयं नृपाणाम् |३२| सोमे नृपे शोभनमङ्गलानि, प्रभूतवारिप्रचुरं च धान्यम् ।
पति, कार्तिक मूल नक्षत्र के दिन जो वार हो वह मेघाधिपति” ऐसा कहा . है वह मत यथार्थ प्रतिभास होता है और दूसरों के मतोंका अभिप्राय बहुत करके ज्योतिषियों को जानने योग्य है । वास्तवमें तो वर्ष का स्वामी, मंत्री और धान्याधिपति इन तीनोंका हो विशेष उपयोग पड़ता है । इनका फल गिरधरानन्द में इस तरह कहा है-जिस वर्ष में राजा, मंत्री और धान्याधिपति ये तीनों एकही हो तो उस वर्ष में दुष्काल पड़े और प्रजा में महामारी आदि हों ॥ ३० ॥ ग्रथान्तर में भी कहा है कि जिस वर्षमें राजा, मंत्री और धान्याधिपति ये एकही ग्रह होतो समुद्र को छोड़कर कहीं भी जल देखने में नहीं आवे अर्थात् वर्षा न हो ॥ ३१ ॥
जिस वर्ष में सूर्य राजा हो तो बादल थोड़ा जल बरसावे, धान्य थोड़े, वृक्षों में थोड़े फल हों, मनुष्यों में किंचित् पीड़ा, चोर और अग्नि की शंका रहे और राजाओं का भय हो || ३२ || चन्द्रमा राजा हो तो अच्छे २ मांगलिक कार्य हों, वर्षा अधिक हो, धान्य बहुत हों, मनुष्यों की व्याधि
" Aho Shrutgyanam"