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तथा वर्षाधिपे लोके दीसदीपोत्सवः स्मृतः ॥२३॥ श्रीहीर विजयस रिकृतमेघमालायां तु— कार्त्तिके शुक्ल द्वितीया-दिने यो बार ईक्षितः । ज्ञेयः स वर्षपः स्वामी तत्फलं वदयते यदः ||२४||
'एतत्तु वृष्टिगर्भकालिकत्वाद् वृष्टिनाथपरम्' अत्रैव वितर्कयान्द्रवर्षस्य प्रतिपदादिक्षणे प्रवेशात् तत्रत्य एव वारो वर्षेशस्तेन प्रतिपत्तिथिः, प्रतिपत्तिथिः प्रथमां कलां भुंक्ते स बारो वर्षापतिरिति । तथा फाल्गुनान्ते कुहुः राजेति मतइयेन कोऽपि भेदः । एतत्तु प्राचुर्येण गुर्जरदेशे प्रवर्त्तते । दाक्षिण्यात्या औदयिक प्रतिषासरमेव राजानमाहुः । पठन्ति चचैत्रस्य शुक्लप्रतिपत्तिथौ यो, वारः स उक्तो नृपतिस्तद्ब्दे । मेषप्रवेशः किल भास्करस्य, यस्मिन् दिने स्यात् स तु तस्य मंत्री २५ कर्कप्रवेशे दिनपः स उक्तः, प्राक्सस्यनाथो मुनिभिः पुराणैः । उत्सव होता है वैसे वर्ष का राजा लोक में बड़ा प्रकाशमान - दीपोत्सव माना है ॥ २३ ॥ श्री हीरविजयसूरिकृत मेघमाला में कहा है कि- कार्त्तिक शुक्ल द्वितीयाके दिन जो वार हो वह वर्षका स्वामी जानना उसका फल आगे कहेंगे ॥ २४ ॥
मेवाधिपति वर्षा का गर्भकालिक होनेसे उसका विचार करना - चान्द्र वर्षका चैत्रशुक्र प्रतिपदा का प्रथम क्षण में जो वार हो वह वार वर्षका अधिपति होता है, इसलिये प्रतिपदादि तिथि हैं । प्रतिपद् तिथिकी प्रथम कला में जो वार हो वह वर्षका स्वामी होता है । तथा फाल्गुनमास की अमावस के दिन जो वार हो वह वर्ष का राजा है ऐसा भी किसी का मत होने से दो मत माने हैं । यह बहुत करके गुजरातदेशमें माना है । दक्षिणदेश के लोग तो उदयकालिक प्रतिपदा के वार को ही राजा मानते हैं । कहा है कि-चैत्रशुक्ल पडवा के दिन जो वार हो वह वर्षका राजा है । मेषसंक्रांति के दिन जो वार हो वह मंत्री होता है | २५ || कर्कसंक्रान्ति के दिन जो
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