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मेघमहोदय फाल्गुनान्ते च यो वारः सोऽब्दपः परिकीर्तितः ॥१॥ भाषाहे रोहिणी सूर्ये दिनवारो जलाधिपः।
आर्किदिनवारो यः स मेघानामधीश्वरः ॥१४॥ दिनवारो वृषे सूर्य कोवाल: प्रकीर्तितः। - . एते वर्षस्य पूर्वार्द्ध प्रोक्ता वार्षिकधान्यदाः ॥१५॥ कचित्तु-चैत्रमासादिवारो यः स धनाधिपतिर्मतः ।
चैत्रे मेषार्कवेलायां लग्ने वर्षे प्रजायते ॥१६॥ खरतगच्छीय-मेघजीनामोपाध्यायास्तु
चैत्र अमावसिवार नृप, मन्त्री मेषरविवार । मिथुनरवौ सो रसधणी, कर्क सत्याधिपवार ॥१७॥
आषाढे रोहिणऋषे, जलाधिपति जो वार । मंत्री और उस से चौथा जो वार हो वह धान्य का अधिपति होता है। फाल्गुन मासके अंतमें जो वार हो वह वर्षका राजा कहा जाता है ।।१३।। आषाढ मास में जब रोहिणी नक्षत्र पर सूर्य आवे उस दिन जो बार हो वह जलका अधिपति है और आर्कि के दिन जो वार हो वह मेव (वर्षा) का अधिपति है॥१४॥ वृषसंक्रान्ति के दिन जो वार हो वह कोटवाल होता है। ये सब वार्षिक धान्यको वर्षका पूर्वार्द्ध में देनेवाले कहें ॥१५॥ किसी का ऐसा मत है कि- चैत्र मासकी आदिमें जो वार हो वह धनका अधिपति माना है और चैत्र मास में मेष संक्रान्तिके समय लग्नेशको वर्षका अधिपति माना है ॥ १६ ॥ खरतरगच्छीय श्री मेघजी नामके उपाध्याय कहते है कि- चैत्र मास की अमावसके दिन जो वार हो वह राजा, मेष संक्रान्ति के दिन जो वार हो वह मंत्री, मिथुन संक्रान्तिके दिन जो वार हो वह रस का अधिपति, कर्कसंक्रान्तिके दिन जो वार हो वह धान्यका अधिपति हैं ॥१७॥ आषाढमें रोहिणी नक्षत्र पर सूर्य आवे उस दिन जो वार हो वह जल का भधिपति है और कार्तिक मासमें मूल नक्षत्र पर सूर्य मावे उस दिन
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