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मेघमहोदये
अष्टमासवशाद् युक्तो दिव्यगर्भः प्रजायते ॥१०॥ श्रावणे शुक्लपक्षे स्थात् स्वातीऋक्षेण सप्तमी । तत्र वर्षति पर्जन्यः सत्यमेतद् वरानने! ॥१०॥ .. अत्र शुक्लादिमासपक्ष एव गर्भपाकस्तत्फलं चोक्तम्, त. था कृष्पक्षादिमासमतेऽपि । अष्टमासवशादिति कथनादेव तन्मतं दृढीकृतं पौषकृष्णपक्षादित्वेन श्रावणशुक्लेऽष्टमासी भावात् । अत एव चैत्रस्यान्ते कृष्णपक्षमाश्रित्य चैत्रोऽयंब. हुरूप इत्युक्ति-ज्योतिर्मतेन, तदा कृष्णपक्षादिमतेन वैशा. खात्, तत्र पञ्चरूपताया युक्तत्वात् , तेनैव कार्तिकामावास्यां बीरनिर्वाणात् । सिद्धान्ते कृष्णपक्षादिर्मासः । पूर्गो मासो यस्यां सा पौर्णमासीति सत्योक्तिः । अत्रापि सम्मतियथा
पौषे मूला भरण्यन्तं चन्द्रचारेण साभ्रखे ।। बादलों से घेरे हुए हो तो पाठ मासका सुंदर गर्भ होता है ॥ १० ॥ हे श्रेष्ठ मुखवाली! श्रावण मासका शुक्ल पक्षमें सप्तमी के दिन स्वाति नक्षत्र हो तो अवश्य वर्षा होती है ॥ १०१ ॥ . . . . यहां जैसे शुक्लादि मास और पक्ष में गर्भ पाक का फल कहा वैसे क्रमादि मासमें भी यही मत (अभिप्राय) समझना । आठ मास ऐसा कहा है. जिससे पौष कृष्ण पक्षसे श्रावण शुक्ल पक्ष तक आठ मास हो जानेसे यही मत निश्चय किया। इसलिये चैत्रनास के अंत में कृष्ण पक्ष आश्री 'चैत्रोऽयं बहु रूप' ऐसी युक्ति ज्योतिष मतसे है, क्योंकि ज्योतिष सिद्धान्तों में शुक्लादि मास माना है और कृष्ण पक्षादिके मतसे वैशाख माससे वर्षा के गर्भ पंच रूप (वायु, गर्जना, विद्युत आदि) समझना । कार्तिक अमावास्याके दिन श्रीमहावीर जि सवरका निर्वाण होनेसे सिद्धान्तमें कृष्णादिमास की प्रवृत्ति है. जिस समय महीना पूर्ण हो उसको पूर्णमासी कहते है यह सत्य उक्ति है । पौष मास में मूलसे भरपी तक चन्द्रनक्षत्रों में आकाश
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