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मेघमहोदये
अत्रेदं विचार्य मामः शुक्लादिः कृष्णादिर्वा, यदि शुक्लादिस्तदा. "यदि भवति कदाचित् कार्तिके नष्टचन्द्रे, .
शनिकुजरविवारे ज्येष्ठमासेऽपि दर्शे । द्विगुणगुणवितर्काद् रत्नतुल्यं च धान्यम्,
बुधगुरुभृगुचन्द्रे मृत्तिकातुल्यमन्नम् ॥१४॥ ग्रन्थान्तरेयदि भवति कदाचित् कार्तिके नष्टचन्द्रे, _शनिकुजरविवारे स्वातिनक्षत्रयोगः । इहभवति तथायु-धमाञ्च योगस्तृतीयः, ... .
क्षयविलयविपत्तिः छत्रभङ्ग त्रिपक्षे ॥९॥ .. लोकेऽपि-काती वदि अमावसी, रवि शनि.मङ्गल होय। स्वाति आयषमान् जो मिने, दरभिख छत्रभंग जोया
श्रावणे प्रथमे पक्षे यद्यश्विन्यां जलं भवेत् । सब प्रकारके बीजोंका नाश करे, वर्षा न हो या अतिप्रष्ट हा. एसा मुनियों ने कहा है ॥ ६३ ॥ यहां शुकादि या कृष्णादि मास का विचार करना, यदि शुक.दि हो तो-- ३.ति, मासकी अमावस के दिन शनि मंगल या रविवार हो ऐस ज्येष्ठ मासकी अमास के दिवस भी शन्यादि हों तो रनके तुल्य धान्य बिके अर्थात् बहुत महँगे हों । यदि बुध, गुरु, शुक्र और · चन्द्र वार हो तो मृत्तिा तुल्य अर्थात् अत्यन्त साता धान्य बिके ॥६४॥ अन्य ग्रन्थ में- यदि यातितकी अमावस शनि, मंगल या रविवार को हो तथा स्वाति नक्षत्र और आयु मान् योग भी हो तो क्षय, प्रलय, विपत्ति हो और तीन पक्षम छत्रभ हो ॥६५॥ लोक भाषामें भी कहा है किकार्तिक कृष्ण अमावास्या रवि, श ने यः मंगलवार को हो तथा साथ में स्वातिनक्षत्र और आयुष्मान् जोग भी हो तो दुर्भिक्ष तथा छत्रभंग हो ॥६६॥ श्रावणके प्रथम पक्षमें यदि अश्विनी नक्षत्रके दिन जल वरसे तो दुर्भिक्षकारी
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