________________
अयनमासपक्षदिननिरूपणम्
(२५९) तदातीव सुभिक्षं स्यादपयोगेषु च सत्स्वपि ॥७॥
शुक्लस्य प्रथमत्वेऽश्विन्या असम्भव एव । 'आषाढ धुरि अष्टमी' इत्यग्रे वक्ष्यमाणमपि न मिलति । कृष्णाष्टम्या लक्षणे "धुरि' इति शब्दवाच्यस्यादरभावात्। अन्यदपि प्रा. षाढकृष्णपक्षस्य तिथिवाराभ्रादिसर्व चतुर्मासमध्ये वीक्षणीयं स्यात् । ज्येष्ठामावासोचिहं चाषाढपूर्णिमायाः प्राक् षोडशदिने च । एतेन ज्योतिःशास्त्रोक्तं मासश्चैत्रः सितादिति । कथितं तत्प्रमाणं स्यान्मेघमालाविदां पुनः ॥१८॥ यद्यपि लोकेधुरि अजुयालो पक्खडो, पिछै अंधारो होइ । इणपरि जोइसगणि सदा, मकरिस सांसो कोइ ॥१९॥ तथा मेघमालायामपि--
पौषस्य कृष्णसप्तम्यां यद्यभ्रेर्वेष्टितं नमः । दुष्ट योगों के होने पर भी अत्यन्त सुभिक्ष होता है ॥ ६७ ॥ यहां पहला शुक्लपक्ष में अश्विनी नक्षत्र का असंभव होता है। प्राषाढ कृयण अष्टमी का फल जो आगे कहेंगे वह भी नहीं मिलता। कृणाष्टमी लक्षण में धुरि शब्द है वह शब्द वाचक है । दूसरी जगह भी भाषाढ कृपक्ष से चतुर्मास माना जाता है | तिथि वार और बादल मादि सब चातुर्मास में देखना चाहिये । ज्येण अमावस आषाढ पूर्णिमा के पहले सोलह दिन पर माना है । यही ज्योतिश्शास्त्रों में मास की गणना चैत्र शुक्लपक्ष से माना है और यही प्रमाणा मेघमाला के जानकार भी कहते हैं ॥३८॥ लोकभाषा में भी कहा है कि पहला शुक्लपक्ष और पीछे कृष्णपक्ष होता है, इसमें ज्योतिषियोंको शंका नहीं करना चाहिये ॥६॥ मेघमालामें भी कहा है कि पौष मास की कृष्ण सप्तमी के दिन आकाश
"Aho Shrutgyanam"