________________
अयनमासपसदिननिरूपणम् भान्विन्यादि च नक्षत्रं संमोल्य द्विगुणीकृतम् ॥७॥.. त्रिभिर्भागैयं शेषं तदा सुभिक्षमादिशेत् ।। शन्ये भवति दुर्भिक्ष-मेकशेषे शुभाशुभम् ॥८८॥ प्राषाढमासे प्रथमे च पक्षे, दृष्टे निरभ्रे रविमण्डले च। नैवाशनि व भवेष वर्षा, मासयंवर्षति वासबस्तु॥८९॥ षष्ठी यदर्कवारेण यन्मासे यत्र पक्षके । अन्नं चुनं महर्घ स्याद् न्यूने न्यून तिथौ ततः ॥१०॥
आश्विने च सिते पक्षे दशम्यादिदिनत्रये। गर्जितं विद्युतं कुर्यात् तगोधूमविनाशकम् ॥११॥ ज्येष्ठे मूलं पूर्णिमायां शुभं वर्ष हिताय तत् । मध्य प्रतिपयोगे द्वितीयायां तु दुःखकृत् ॥ ९२॥ बदुक्तम्-ज्येछे मुलं खितीयायां सर्वधीजविनाशकृत् ।
अवृष्टया चातिवृष्टया वा इत्येवं मुनिरजीवीत् ॥९३॥ रविवारसे वार प्रतिपदा आदि गत तिथि और अश्विनी आदि गत नक्षत्र, इनको जोड़कर दूना करो ॥ ८७ ॥ पीछे इसमें तीन का भाग दो, यदि दो शेष बचे तो सुभिक्ष, शून्य शेष बचे तो दुर्भिक्ष, और एक शेष बचे तो शुभाशुभ (समान) जानना ॥ ८८ ॥ आषाढ मासके शुक्लपक्ष में रवि माडल यदि बादल रहित हो तथा गाज वीज या वर्षा न हो तो आगे दो महीने तक वर्षा हो ॥८६॥ जिस महीने में जिस पक्षमें षष्ठी यदि रविवार युक्त हो तो घी और भन्न महँगे हों, तिथि थोड़ी हो तो थोड़ा और भधिक हो ती अधिक तेज हो ॥६०॥ माश्विन मासके शुक्लपक्ष में दशमी आदि तीन दिन गर्जना और बिजली हो तो गेहूँ का नाश हो ॥६॥ ज्येष्ठ मासकी पूर्णिमाके दिन मूल नक्षत्र हो तो वर्ष भर शुभ करे, प्रतिपदा के दिन हो तो मध्यम और द्वितीया के दिन हो तो दुःखकारक होता है ॥१२॥ कहा है कि- ज्येष्ठ मासकी दूज के दिन मूलनक्षत्र हो तो
"Aho Shrutgyanam"