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अंयनमासपक्षदिननिरूपणम्
रक्तमुत्पलवोमं यद्याकाशं तु कातिके । तदा शुभं भाविवर्ष सन्ध्यायां तन्न शोभनम् ॥३५॥ यतः कत्तियमासह गयणलौ जइ रतुप्पलवन्न ।
तो जाणिजे भडुली जलहर वरसै पुन्न ॥३६॥ हीरमेघमालायां विशेषोऽपिकातीमासे देखिये, रविरत्तडो वियाल । तोजाणिजे पंडिया, वरसह आलोमाल ॥३७॥ तुषारपननं मार्गे पौषे हिमसमुद्भवः ।। माघमासेऽतिशीतं च फाल्गुने दुर्दिनं शुभम् ॥३८॥ 'फाल्गुने कालवातोऽपि चैत्रे किश्चित्पयोहितम् । वैशाखः पञ्चरूपः स्या-ज्ज्येष्ठो धर्मान्वितः शुभः ॥३९॥ मासाष्टकनिमेत्तेना-मुना मासचतुष्टयम् ।
भाषाढाचं शुभं ज्ञेयं यतो मेघमहोदयः ॥४०॥ तेज हो ॥३४॥ यदि कात्तिकमासमें आकाश कोंपल (नवीन कोमल पत्ती) के सदृश रक्त वर्ण हो तो आगमिवर्ष शुभ होता है मगर वह संध्या समय हो तो अच्छा नहीं ॥ ३५ ॥ कहा है कि-- कार्तिक मास में आकाश यदि कोपल सदृश रक्तवर्ण वाला हो तो हे भडलि! वरसाद पूर्ण वरसे ॥३६॥ हीरमेघमालामें भी कहा है कि--- कात्तिक मासमें सूर्य रक्त वर्णवाला दिग्वाई दे तो हे पंडित. वर्ष बहुत उत्तम जानना ।। ३७ || मार्गशीर्ष में तुषार (ओस) को गिरना, पौषमें हिम (बर्फ) का गिरना, माघमास में अत्यन्त शीत और फाल्गुनमें दुर्दिन होना शुभ है ॥३८ फाल्गुन में तीन पवन, चैत्रमें कुछ बादल, वैशाम्बमें पंचरूप (वायु, वादल, वर्षा, । ज और वीज) और ज्येष्ठ में गमी अधिक ये चिह्न हों तो शुम जानना ॥ ३६ ॥ इन आठ मासमें कहे हुए शुभ निमित्त हो तो आपाढादि चार मास शुभ जानना, इनमें वर्षा अच्छी हो ॥ ४० ॥
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