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अयनमासपक्षविननिरूपयाम्
(२३९) चैत्रे खडहडि नहुकरे, मलयपवन नदु होय । तो जाणे तुं महुली, गम्भविणास न कोय ॥४५॥ ___अत्रोच्यते-स्याबाद एवं प्रमाणं, विद्युतोऽभ्राणि वाम दोषाय; जलप्रवाहे तु दोष एवमहावृष्टिरूपात् । चैत्रे हि मी. ने सूर्ये सति विद्युदभ्रं वा उक्तमेव, यतस्त्रैलोक्यदीपकेमीनसंक्रान्ति काले च पौष्णभोग्यदिने भवेत् । यत्र विद्युच्छुभो वात-स्ततो गर्भो ध्रुवं भवेत् ॥४६॥
जलच्छटानां गर्भरूपादेव न दोषः । अथ यदि मेषे सू. यः कदापि तत्राभ्रमप्युक्तं प्राक् । तदेवश्रीहीरसूरयोऽप्याटु:चित्तस्य पीय तझ्या बउथि तह पञ्चमीम अम्भाई। पुब्बोत्तस्वायाओ महासभिक्खं बियाणाहि ॥४७॥ ___ स्थानांगे घनवृष्टिरुक्ता सा तु बिन्दुमात्रैव चैत्रे किशित् मास यदि निर्मल हो तो चार मास बहुत अच्छी वर्षा हो । जहां २ बादल हों वहां २ वर्षाकी हानि और मनुष्य धान्यकी प्राशा छोड दें ॥ ४४ ॥ चैत्रमें जलप्रवाह न चले और मलयाचल का पवन न चले, तो गर्भ का नाश न हों; ऐसा भडलीका वाक्य है ॥४५॥ यहां स्याद्वाद ही प्रमाण माना है- चैत्र में बिजली या वादल हों तो दोष नहीं, किंतु अधिक वर्षा हो कर जलप्रवाह चले तो दोष है । चैत्र मास में मीन के सूर्य होने पर बिजली और बादलका होना श्रेयः माना जाता है । जैसे त्रैलोक्यदीपकमें कहा है कि-- मीन संक्रान्तिमें रेवतीनक्षत्र के भोग्य दिनों में जहां बिजली भौर वायु हो वहां निश्चयसे गर्भ होता है ॥ ४६ ॥ गर्भ के कारण यदि जलके छींटा गिरे तो दोष नहीं । मेषके सूर्य में किसी समय बादल होना पहले कहा उस को श्री हीरविजयसूरि भी कहते है-- चैत्र मास की दूज, तीज, चौथ और पंचमी के दिन बादल हों और पूर्व या उत्तर दिशा का पवम चले तो बड़ा सुकाल जानना ॥ ४७ ।। स्थानांगसूत्र में जो वर्षा होना
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