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मेवमहोदये चैत्रे मेघमहारम्भो वर्षस्तम्भविनाशकः । मृलाइ भरणीपर्यन्तं खं निरभ्रं सुभिक्षाकृत् ॥४१॥ चैत्रे वृष्टिकरो मेघोऽयथा मेघाः सुनिर्मलाः । वैशाखे पश्चवर्णाः स्यु-स्तदा निष्पत्तिरुत्तमा ॥४२॥
अत्रेदं विचार्यते-ननु चैत्रे निर्मलता शुभासाभ्रतावाताचा किश्चित् पयोहितमिति वचनम् । स्थानांगवृत्तौ पः बनघनवृष्टियुक्ताश्चैत्रे गर्भाः शुभाः सपरिवेषा' इत्यागमाच। उक्तं च लोकेक्षेत्रमास जो वीज विलोवे, धूरि वैशाखे केस धोवे। जेठमास जो जाई तपंतो, कुण राखेजलहर बरसंतो॥४३॥
न बादलं विना विशुद् न द्वितीयं नैर्मल्यस्य बहुधा बचनात् । यत:
चैत्रमास जइ हुई निरमलो, चारमास वरसे गलगलओ। जिहां २ वादल तिहां २विणास, मानवधाननीमेल्है पास ४४॥
चैत्रमासमें अधिक वर्षा हो तो गर्भका विनाश हो । मूल से भरणी पर्यन्त आकाश बादल रहित निर्मल दीखे तो सुभिक्ष कारक होता है ।।४१॥ चैत्रमासमें दृष्टिकारक बादल हो या अच्छे निर्मल बादल हो और वैशाखमें पंच वर्णवाले बादल हो तो उत्तम जानना ॥ ४२ ॥ चैत्रमास निर्मल हो तथा बादल सहित हो, वायु चले और कुछ वर्षा हो तो शुभ समय होता है । स्थानांगसूत्रकी वृत्तिमें पवन बादल और वर्षावाला तथा परिमंडलवाला गर्भ चैत्रमासमें शुभमाना है । लौकिक भाषामें कहा है कि-चैत्रमास में बिजली चमके, वैशाखमें किंशुकपुष्प की धूलिधो जाय याने वरसाद के द्वारा किंशुकपुष्पका रंगसे धूलि रंगवाली हो जाय और ज्येष्ठमास बहुत तपे तो बहुत अच्छी वर्षा हो ॥४३॥ चैत्रमास में बादल तथा बिजली न हो और आकाश निर्मल हो, इत्यादि बहत प्रकारके मत भेद हैं । जैसा कि- चैत्र .
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