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अयनमासपतदिननिरूपणम् (२३३.). निश्चय सुंदरि! समो विणठो ॥९॥ शनि आइश्चइ मंगलइ जो ककडसंकंति । तीडा मूसा कातरा निहुं मांहे एक हुवंति ॥१०॥ मेषकर्कमकरेऽर्कसंक्रमे, क्रूरवारसहिते जलं नहि । धान्यमल्पतरमेव वत्सरे, विग्रहो विपुलरोगतस्कराः॥११॥ श्रय मासा:--- चैत्रे च श्रावणे मासे पञ्चजीवो यदा भवेत् । दुर्भिक्षं रौरवं घोरं छत्रभङ्गं विनिर्दिशेत् ॥१२॥ द्वादश्यां यदि वा कृष्णे शनिवारी यदा भवेत् । ततश्चतुर्दशे मासे पश्चार्कवारसम्भवः ॥१३॥ . पश्चार्कवासरे रोगाः पञ्चभौमे भयं महत् । दुर्भिक्षं पश्चमन्देषु शेषा वारा, शुभप्रदाः ॥१४॥ .. यदुक्तम्-एकमासे रवेाराः पञ्च न स्युः शुभावहाः । अमावास्यार्कवारेण महर्घत्वविधायिनी ॥१५॥
हो तो निश्चयसे शून्यता हो ॥६॥ यदि कर्कसंक्रांति शनि रवि और मंगल वार को हो तो टीडी चुहा या कातरा इन तीनमें से एक का उपद्रव हो । १०.॥ जो मेष कर्क तथा मकर संक्रांति क्रूरवारको हो तो जल न बरसे, धान्य थोड़ा, विग्रह रोग और चोरीका बहुत उपद्रव हो ॥ ११ ॥ .. . ..
चैत्र और श्रावणमासमें जो पांच बृहस्पति हो तो दुर्भिक्ष महा घोर दुःख तथा छत्रभंग हो।॥ १२॥ यदि कृष्ण द्वादशी को शनिवार हो तो उससे चौदहवें महीने में पांच रविवार आते हैं ॥ १३ ॥ जिस मासमें पांच रविवार हो तो रोग, पांच मंगलवार हो तो भय अधिक, पांच शनिवार हो तो दुर्भिक्षता और इनसे अतिरिक्त दूसरा वार पांच हो तो शुभदायक होता है ॥१४॥ एकमासमें पांच रविवार शुभ फलदायक नहीं है। अमावास्या रविवारको हो सो अन्न महगा हो ॥ १५॥ चैत्र और श्रावणमास में पांच रविवार हो तो
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