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राहुवारफलम्
भौमग्रहे सति राहो राजविरोधप्रजाभवनदाहौ । बालगणे कृतकाल: शशिसुतभवनस्थिते तमसि ॥५॥ गुरुभवने विजपीटा रोगा पहुलाः परस्परं चैरम् । शुक्रगृहे विपुलं जलं समर्पताने सुभिक्षं च ॥ ६ ॥ शनिभवमे युद्धभयं सरोगता वस्तुनो महर्घत्वम् । शनिवच्छेषं बाच्यं प्रायस्तमसः प्रकृतिसाम्यात् ||७|| पुनर्विशेषः -
यस्मिन् संवत्सरे राहु-मीनराशौ प्रजायते । तस्मिन् मासे भयं विद्यात् प्राघूर्णिकसमागमः ||८|| एवं ज्ञात्वा कर्त्तव्यो यषान्नस्यातिसंग्रहः । संग्रहः सर्वधान्यानां लाभो द्वित्रिचतुर्गुणः ||९|| वर्षमेकं तु दुर्भिक्षं रौरवं परिकीर्त्तितम् । प्राप्ते त्रयोदशे मासे सुभिक्षमतुलं भवेत् ॥ १०॥
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के घरमें राहु जानेसे राजाओं में विरोध, प्रजा तथा घर में अनिका उपद्रव, बुध घर में राहु हो तो बालकोंको कष्ट हो ॥ ५ ॥ गुरुके वरमें राहु हो तो ब्राह्मणों को कष्ट, रोग अधिक और परस्पर द्वेष हो । शुक्र के घर में राहु हो तो वर्षा अधिक, अन्नभाव सस्ता और सुकाल हो ॥ ६ ॥ शकेि घर में राहु हो तो युद्धका भय रहे, रोग हो और वस्तुका भाव तेज हो । विशेष इसका फलादेश शानिकी तरह समझना, क्यों कि राहुकी और शनि की प्रकृति समान है ॥ ७ ॥
जिस वर्षमें राहु मीनराशि का हो उस महीने में भय हो, किसी अतिविका आगमन हो ॥ ८ ॥ ऐसा जान कर यत्र आदि सब धान्योका संग्रह करना चाहिये, इससे बना तीगुना या चौगुना लाभ हो । ह ॥ एक वर्ष तक बड़ा दुष्काल तथा दुःख रहे, और तेरहवें मास में खूब सुकाल हो । १० || जब कुंभराशि पर राहु हो और यदि उसके संग मंगल सी हो तो
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