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- मैत्रमहोदय, शनैश्चरैकादं विदुषोऽधिगम्य । शुभाशुभं देशगतं मनीषी, ... जानाति पद्माकृतिनामतः स्यात् ॥४५॥
॥ इति कूर्मचक्रविवरणम् ॥ ... अथ राहुविचारः। राहुमाहुरिह वार्षिकमीशं, पूर्वजा हि.सुषयः प्रिययोधाः ।... तेन तस्य भुवि चारविचारं, महे परिषिमृश्य विकारम् ॥१॥ मीनमेषगते राहो सुभिक्षं राजविड्वरम् । तुलाकुम्भे महावृष्टि-महर्घ मकरे वृषे ॥२॥ धनुवृश्चिकयो राही प्रजायेत प्रजाक्षयः । ... ईतयोऽनीतयो राज्ञां घोरचोरभयं पथि ॥३॥ दुर्भिक्षं सिंहगे राहो कर्कटे नृपतिक्षयः ।... देशभङ्गछत्रपातो यत्र दृष्टिः शनेर्जने ॥४॥ को सरलत्रुद्धिसे समझ कर, शनैश्चरसे देशमें होनेवाले शुभाशुभ फलादेश को जानते हैं । यह कूर्मचक्र पद्म (कमल) के सदृश आकारवाला है, इसलिये उसको पद्मिनीचक भी कहते है ॥४५॥ .
_ अच्छे बोधवाले बुद्धिमान लोग, इस राडको वार्षिक (वर्षसंबंधी ). स्थामी कहते हैं, इसलिये इसके विकारका विचार कर जगत्में उसके चार (गति) के विचारका वर्णन करते हैं- ॥१॥ मीन या मेष राशि पर राहु हो तो मुकाल तथा राजाओंमें विग्रह हो । तुला या कुंभराशि पर हो तो. वर्षा अविक, मकर या वृषराशि पर हो तो धान्यादि महँगा हो ॥ २ ॥ धनु या वृश्चिकराशि पर राहु हो तो प्रजाका नाश करें, ईतिका उपद्रव हो, राजा कुटिल नीतिवाले हों और रास्तेमें चोरोंका बड़ा भय हो ॥३॥ सिंह राशि पर राहु हो तो दुष्काल, और कर्क पर राष्ट्र हो तो राजाका विनाश हो.. जहां शनिकी दृष्टि हो वहां देशका भंग तथा छत्रभंग होता है। मंगल.
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