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राहुचारफलम
(२२५)
जलोपजीविनी लोका महाद्या ये च पण्डिताः ॥ ४६ ॥ इति सशिग्रहणेन राहुफलम्
अथनक्षत्रपीडाफलम्
नक्षत्रे स्थितश्चन्द्र-स्तत्र चेद ग्रहणं भवेत् । पीडितं तद् बुधा: प्राहु-स्तत्फलं प्रोच्यतेऽधुना ॥ ४७ ॥ अश्विन्यां पीडितायां स्थान- मुद्गादीनां महर्घता । भरण्यां श्वेतवस्त्रेभ्यो लाभं मासत्रये भवेत् ॥४८॥ कृत्तिकायां हेमरूप्य प्रवालमगिमौक्तिकम् । सङ्ग्रहीतं लाभदायि मासे व नवमे स्मृतम् ॥४६॥ रोहिण्यां कार्पास सङ्ग्रहो लाभदायकः । दशमासान्तरे प्रोक्तः सोमवेधो न चेदिह ॥५०॥ मृगशीर्षेऽपि मञ्जिष्ठा लाक्षा क्षारः कुसुम्भकम् । मह दशमासान्ते लाभद च यथोचितम् ॥ ५१ ॥ घृतं महर्घमार्द्रायां लाभदं मासपञ्चके । तैलालाभ: पुनर्वस्वोर्मासः पञ्चकतः परम् ॥५२॥ पंडित आदि पीडित हो ॥ ४६ ॥
जिस नक्षत्र पर चन्द्रमा स्थित हो उसमें यदि ग्रहण हो तो विद्वान लोग उस नक्षत्र को पीडित मानते हैं उसका फलादेश को अब कहता हूँ ॥ ४७ ॥ अश्विनी में ग्रहण हो तो मूंग आदि का भाव तेज हो । भरणीमें ग्रहण हो तो सफेद वस्त्रोंसे तीन मासमें लाभ हो ॥ ४८ ॥ कृतिका में हो तो सोना चाँदी प्रवाल (मूंगा) मणि और मोती इनका संग्रह करनेसे नव वें महीने लाभ हो ॥ ४६ ॥ रोहिणी में हो तो सूत कंपास का संग्रह करनेसे देश महीने पीछे लाभ हो, यदि चन्द्रमा वेधित न हो तो ही लाभ होता है। ॥ ५० ॥ मृगशीर्ष में हो तो मँजीठ लाख क्षार और कुसुंत्र आदिका संग्रह करनेसे दश महीने पीछे उचित लाभ हो ।। ५१ । आदर्श में हो तो घी
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