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मेषमहोदचे
कन्यायां ग्रहणे पीडा त्रिपुटाशालिजातिषु । कवीनां लेखकानां च गायकानां धनक्षयः ॥ ४० ॥ तुलायामुपरागे च दशार्णवंककाहवः । मरयश्चापरान्तश्च पीड्यन्ते येऽतिसाधवः ॥४१॥ वृश्चिके ग्रहणे दुःखं सर्वजातेः प्रजायते। यदुम्बरस्य मन्द्रस्य चौलयोधेयकस्य वा ॥ ४२ ॥ यदोपरागश्चापे स्यात् तदामान्त्याश्च वाजिनः । ... विदेहमल्लपाञ्चालाः पीडन्यन्ते भिषजो विशः ।। ४३ ॥ मकरे ग्रहणे पीडा नीचानां मन्त्रवादीनाम् । स्थविराणां नटानां च चित्रकूटस्य संक्षयः ॥ ४४ ॥ कुम्भोपरागे पीड्यन्ते गिरिजाः पश्चिमा जनाः । - तस्करा हिरदाभीरा वैश्याश्च वैदिकादयः ॥ ४५ ॥ मीनोपरागे पीड्यन्ते जलद्रव्याणि सागराः। . धनवानोंका धन नाश हो ॥ ३६ || कन्याराशि के ग्रहण में त्रिपुट और शालिजालके लोगोंको पीडा हो तथा कवि लेखक और गानेवालोंके धन का नाश हो ॥ ४० ॥ तुलाराशिके ग्रहण में दशार्ग बंक काहव मरुभूमि और अपरान्त इन देशों के लोगोंको तथा साधु जनोंको पीड़ा हो ॥४१॥ वृश्चिकराशिके ग्रहण में सब जातिवालोंको पीडा हो. यदुंबर मंद्र चौल मौर. औधेय जाति के लोग दुःखी हों ॥ ४२ ॥ धनराशिके प्रहण में मंत्रिवर्ग को तथा घोड़े को विदेह मल्ल पांचाल देशवासी वैद्य और वैश्योंको पीड़ा हो ॥४३॥ मकरराशिक ग्रहणमें नीच मंत्रवादियोंको पीड़ा हो. स्थविर (वृद्ध) और नट दुःखी हों, चित्रकूटका नाश हो ॥ ४४ ॥ कुंभराशिके ग्रहण में पधिनदेशके पर्वतवासी लोग दुःखी हों, चोर द्विरद भाभीर वैश्य और वैद्य आदि दुःखी हों ॥ ४५ ॥ मीनराशिके ग्रहणमें सागरके अलद्रव्य में पीड़ा हो तथा जलसे भाजीविका करनेवाले मल्लाह आदि लोग और भाट तथा
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