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गंगाद्वारं कुरुक्षेत्र श्रीकण्ठं हस्तिनापुरम् ॥३६॥ अश्वचक्रेकपादश्च गजकर्णस्तथैव च । एते देशा विनश्यन्ति परेऽपीशानसंस्थिताः ॥४०॥ यत्र देशे स्थितः सौरि-स्तत्र दुर्मिक्षविग्रहः । परदेशस्थितिः कुर्याद् विग्रहं पृथिवीभुजाम् ॥४१॥ मरपतिजयचर्याग्रन्थे पुन:..प्रश्वीकूर्मः समाख्यातः कृत्तिकादियमान्तकः । देशादिस्वस्थमृदादि वीक्ष्य कूर्मचतुष्टयम् ॥४२॥ पूर्ववचक्रमालिख्य देशनामःपूर्वकम् । देशकूर्मे भवेत्तत्र यत्र सौरिः क्षयस्ततः ॥४३॥ नगरे नागरं धिष्ण्यं कृत्वादी विलिखेत् ततः। क्षेत्र क्षेत्रभान्यादौ कुर्यात् कूर्म यथास्थितम् ॥४४॥ कूर्माख्यया चक्रमवक्रबुद्धया, . हस्तिनापुर ॥३६॥ अश्वचक्र, एकपाद, गजकर्ण ये ईशान कोण के देश हैं उनका विनाश हो ॥४०॥ जिस नक्षत्र पर शनि हो उस नक्षत्र की दिशाके देश का विनाश हों, या उसमें दुर्भिक्ष पड़े, विग्रह हो, परदेश स्थिति हो, और राजाओंमें परस्पर विग्रह हो ॥ ४१ ॥ .... कृत्तिकासे भरणी नक्षत्र तक के नक्षत्रों का पृथ्वीकूर्मचक्र कहा, उसमें अपने अपने देश आदिके नक्षत्रका विचार कर शुभाशुभ फल कहना । कूर्मचक विद्वानोंने चार प्रकारके माने हैं-देश नगर क्षेत्र और गृह ॥४२॥ये चार प्रकारके कूर्मचक्रमें पूर्ववत् देशके नाम और नक्षत्र पूर्वक याने कूर्म के नक्षत्र
और देश मादि. मध्यके हो तो मध्यमें और दिशा विदिशाके हो तो दिशा मौर विदिशामें लिखना चाहिए । इसमें जिस पर शनिका वेध हो या स्थित हो उसका विनाश होता हैं॥४३॥ कूर्मचक्र में नगर संबंधी नक्षत्र नगरमें और देश सं. बांनी नक्षत्र देशमें यथास्थित लिखना चाहिये ॥४४॥ विद्वान जन कूर्मनामके चक
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