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(२०८)
मेघ महोदये
अथ शनिभोगाद्दिनफलं या सप्तयमजिह्वाशनिभं दिनभे योज्यं तदङ्कं सप्तभिर्भजेत् ।
अन्नं वातं तथा युद्धं दुर्भिक्षं छत्रपातनम् ||८|| शून्यता रौरवं प्रोक्तं फलं ज्ञेयं विचक्षणैः । एता सप्ताप्यग्निजिह्वा यमजिहा प्रकीर्त्तिता ॥ ६ ॥ पाठान्तरे - सूर्य भादिनभं यावत् सप्त भागे जलं कलिः । रोमोsनिर्वायुः पशु-पोडा दुर्भिक्षकृच्छनिः ॥ १० ॥
अथ शनेरुदयविचार :
मेषे शनेरुदयने जलवृष्टिरुचैः,
सौख्यं जने वृषभगे तृणकाष्ठकष्टम् । अश्वेषु रोगकरणं च महर्घमिक्षु -
जन्यं गुडादि मिथुनेऽतिसुभिक्षमेव ॥ ११ ॥ वृष्टिर्न कर्कगृहगे सरसां च शोषः,
सर्वत्र मारिभयमाशु जनेऽतिपीडा । तिड्डागमः क्वचन सिंहगते शिशूनां
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शनिनक्षत्रको दिननक्षत्र में जोड़ कर सातसे भाग देना, शेष बचे इनका क्रमसे फल कहना - अन्नप्राप्ति, वायु अधिक, युद्ध, दुल्काल, छत्रभंग, शून्यता और दुःख ऐसा फल विद्वानोंने कहा है । इस सातोंको अग्निजिह्वा या मजिह्वा कहते है ॥॥॥ पाठान्तर से - सूर्यनक्षत्र से दिननक्षत्रतक गिनकर सात से भाग देना, शेष बच्चे उसका फल कहना - वर्षा, कलह, रोग, अभि, वायु, पशुपीड़ा और दुर्भिक्ष कारक हो ॥ १० ॥
मेष राशिमें शनिका उदय हो तो जलवर्षा और मनुष्यों में सुख हो । वृष राशिमें शनिका उदय हो तो तृण काष्टका कष्ट, घोडाओं में रोग और इक्षु (गन्ना) से उत्पन्न होनेवाली गुड आदि वस्तु महँगी हो । मिथुन राशि में शनिका उदय हो तो अधिक सुभिक्ष हो ॥ ११ ॥ कर्कराशिमें शनि
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