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मेघमहोदये .. मीने शनिस्तदा दुर्भिक्षं लोके दुर्बलता, माता पुत्रं वि. क्रीणाति, मालपदे महर्घता, उत्पात: 'कांगणी गेहुं चणा ज्वार माषगुडलवणवस्त्रनालिकेरटोपरा सुंटिकपूरजातिफल' एषां मासपञ्चकात् परतो विकयो द्विगुणलाभः, धान्याल्लामा, दक्षिणस्यां धान्यं महर्घ मालपदे राजविरोधः, प्रजा वसति, वाषरवस्तुमहर्घता धातुवस्तुसुवर्णरूप्यतामंत्रपुलोहं महर्घसर्ववस्तुवाणिज्ये लाभः । इत्येतद् गौतमस्वामि'भाषितं राशिमण्डलम् । शनैश्चरप्रचारेण ज्ञातव्यं वर्षहेतवे ॥१२॥ ...
शनैः शनैश्चारफलं विचिन्त्यं, राशीशमैत्रीगृहचिन्तनाचः । शुभस्य वेधोऽर्द्धफलं शनेः स्यात्, क्रूरस्यवेधे कथितातिरिक्तम्।१ देशांश्च वस्तूनि शनिस्वमित्र-राशीनि किञ्चित् परिपीडयेत। राशे रिपूणां बहुधा विनाश्य, ददाति दुःखानि रहस्यमेतत् ।२ अथ शनिनक्षत्रभोगफलम्------ संग्रह करना, अभिमानी लोग नम्र हो, धान्यसे दूना लाभ ॥ ११ ॥
जब मीनराशिका शनि हो तब दुर्भिक्ष, लोकमें दुर्दल ता, माता पुत्रको बेचे, मालवामें महँगाई, उत्गत, कांगणी गेहूँ चणा जुआर उर्द गुड नमक वस्त्र श्रीफल टोपरा सोंठ कपूर जायफल इनको पांच मास पीछे बेचनेसे दूना लाभ हो, धान्यसे लाभ, दक्षिगमें धान्य भाव तेज, मालवामें विरोध, प्रजा का वास, वस्तु तेज, धातु वस्तु सोना रूपा तांबा रांगा लोहा तेज, सब वस्तु का व्यापारमें लाभ ॥१२॥
राशिका स्वामी और ग्रह मैत्रि आदिका विचार कर शनैश्चरका चालन फल विचारना चाहिये. शुभ ग्रहका वेध हो तो शनिका अई फल
और कार प्रहका वेत्र हो तो अनिष्ट फल है ॥ १ ॥ शनि अपनी या मित्र ग्रहकी राशिका हो तो देश और वस्तुको किंचित् पीडा करे. यदि शत्रु राशिका हो तो बहुत विनाश और बहुत दुःख दें. यह शनिका फल है ॥२॥
"Aho Shrutgyanam"