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मेघमहोदये
अङ्गुलीनां नखाग्रे तु योजनाऽयुतसंख्यया ॥ १९ ॥ एवं कूर्मप्रमाणं च कथितं नादियामले | तस्योपरि स्थिता चेयं सप्तद्वीपा वसुन्धरा ||२०|| कूर्माकारं लिखेचक्रं सर्वावयवसंयुतम् । पूर्वभागे मुखं तस्य पुच्छं पश्चिममण्डले ॥२१॥ पूर्वापरं लिखेद्वेषं वेधं वा दक्षिणोत्तरम् । ईशानरक्षसांवैधं वेधमा नेयमारुतम् ॥२२॥ नाभिशीर्षचतुष्पाद पुच्छकुक्षिषु संस्थिते । तारात्रयाङ्के ह्येतस्मिन् सौरिं यत्नेन चिन्तयेत् ||२३|| कृत्तिका रोहिणी सौम्यं कूर्मनाभिगतं त्रयम् । पृथिव्यां मिथिला चम्पा कौशाम्बो कौशिकी तथा ||२४|| अहिच्छत्रं गया विन्ध्या अन्तर्वेदिश्व मेखला । कान्यकुब्जं प्रयागश्च मध्यदेशोऽयमुच्यते ॥ २५ ॥
चार करोड़ योजनका पाद (पैर) है, दश हजार योजनके अंगुलियोंके नख है ॥ १६ ॥ इस तरह कूर्मका प्रमाण आदियामल शास्त्र में कहा है, उस के ऊपर सप्त दीवाली पृथिवी रही हुई है ॥ २० ॥ सब अवयवों वाले कूर्मके आकार सदृश चक्र बनाना चहिर, उसका पूर्वमें मुख तथा पश्चिम में पुच्छ की कल्पना करनी चाहिये ॥ २१ ॥ पूर्व और पश्चिम, उत्तर और दक्षिण, ईशान और नैर्ऋत्य, आप और वायव्य इन दिशाओं में अन्योऽन्य बेध होता है ॥२२॥ नाभि, मस्तक, चार पैर, पुच्छ और दोनों कूखों में कृत्तिकादि तीन तीन नक्षत्र लिखकर शनैश्वरका विचार करना चाहिए ॥ २३ ॥
कूर्मकी नाभि (मध्य) भाग में कृत्तिका रोहिणी और मृगशिर ये तीन नक्षत्र लिखना चाहिए और पृथ्वीके मध्यभाग में मिथिला, चंपा, कौशांबी, कौशिकी प्रदेश ॥ २४ ॥ तथा अहिछत्र, गया, विन्ध्याचल, अंतर्वेदी (प्रयागसे हरिद्वार तक गंगा यमुना का मध्य प्रदेश), मेखला (नर्मदा प्रदेश), का
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