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मेघमहोदये। पिम्वस्थानेऽहतां तेन कूर्मनामापि लिख्यते। नागेन्द्रः शेषनामापि तस्यैवोच्चैः प्रतिष्ठितः ॥६॥ महाशिरा महीपालः प्रागभूच्छूकराननः।... अन्यायात् पृथिवीखण्डं प्लाव्यमानं महाधिना ॥७॥ ररक्ष रक्षसां नाशात् कृत्वा वाराहविद्यया । ताग्रूपं दंष्ट्रयैवो-द्धरणेन भुवस्तदा ॥८॥ ततो मिथ्यादृशामेषा निर्निमेषा व्यजृम्भता । मनीषा यबराहेण दंष्ट्राग्रेण धृता मही ॥९॥ यदुक्तं रुद्रदेवेन स्वतमेघमालायाम्-----.. कूर्मचक्र प्रवक्ष्यामि यदुक्तं कौशलागमे । . येन विज्ञानमात्रेण ज्ञायते देशनिर्णयः ॥१०॥ प्रयस्त्रिंशत्कोटिदेवाः कूमैकदेशवासिनः । सुमेरुः पृथिवीमध्ये श्रूयते न च दृश्यते ॥११॥ . तादृशाः पर्वताश्चाष्टौ सागरा द्वीपदिग्गजाः । सर्वेते विधृता भूम्या सा धृता येन सोऽत्र कः ॥१२॥ शेषनाग का स्थापन करना ॥ ६ ॥ पहले शूकर के मुखवाला महाशिर नामक नृपति हुआ था, उसने अन्यायसे समुद्रसे बहती हुई पृथिवी का रक्षण किया ॥ ७ ॥ तथा वाराही विद्यासे वाराह सद्दशरूप करके तथा राक्षसोंका नाश करके दांतसे पृथिवीका उद्धार किया ॥८॥ इसलिए अन्य दर्शनीयोंका ज्ञान मिथ्या है कि वाराहने दांतके अग्रभाग पर पृथिवीको धारण किया ॥ ६ ॥
जैसा आगममें कहा है वैसा कुर्मचक्रको मैं कहता हूँ, जिसके जानने से देशका शुभाशुभ फल मालुम पड़ता है ॥ १० ॥ तेतीस कोटि देवता कूर्मके एक देशमें रहे हुए हैं. पृथिवीके मध्य भागमें मेरु पर्वत है, ऐसा सुना जाता है मगर देखने में नहीं आता ॥ ११ ॥ ऐसे मेरु पर्वत आठ
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