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मेघमहोदगे दौर्लभ्यं जलदेष्ववर्षणविधिः सिंहे तुरङ्गव्यथा ॥१५॥ धातनां च महर्घतान्नविगमः कन्यास्थितावनतो, ...
लोकेऽन्येऽपि तुलारलेन सततं निष्पत्तिरानन्दतः । स्वल्पं धान्यमलो जने नृपभयं पीडापि तीडादिजा,
चापे लोकसुखं मृगेऽपि पवनेऽनावृष्टिनारीमृतिः॥१६॥ कुंभ शीतभयं चतुष्पदपरिग्लानिश्च हानिर्गवां, . मीने हीनतया घनस्य न जलं कापीह वापीस्थले। सन्तापी नृपतिः स्वधर्मविमुखः पापी जनः पीडया,
मन्दमन्दसमन्दभूपतिरणो मन्देऽस्तमप्याधिते ॥१७॥ कन्याय मिथुने मोने वृषे धनुषिश स्थितः। .: शनिः करोति बुर्भिक्षं राज्ञां युद्धं परस्परम् ॥१८॥
आग्नेयेऽपि च वायव्ये बारणे बा महेन्द्रके। बक्री शनिमेण्डले स्यात् फलं देशेषु तादृशम् ॥१९॥ यी दुख हो । कार्वाशिमें दानुका भय, काम धान्यादि दुर्लभ, जाइलों से जल रमे । मिहाशिम घोडो को दुःख हो ॥ १५॥ धातुभाव तेज और साना पाच । कन्यारशिमें शनिका अस्त हो तो दूसरे लोक में भी वि. काय होतुला राशि सर्वदा आनंद हो, धान्य थोडा हो । वृश्चिकराशि कानुध्यान राजाका भय, टीडी आदि की पीडा । धनराशिमें शनि अस्त हो सो लोकम सुख हा ! मकरयाशिमें पवन अधिक, अनावष्टि और स्त्रियोंकी मृत्यु अधिक हो ॥१६॥ कुंभराशिने शीतका भय, पशुओंमें ग्लानि, और गौयांकी हानि हो । मीनराशिमें शनिका अस्त हो तो वर्ष की हानि होनेसे काई बाबडी में भी पानी न मिले, राजा अपने धर्मरो विमुख तथा दुःख इनेवाले हों, मनुष्य पीड़ा से प.पी हो और गाजाओंमें युद्ध हो ॥ १७ ॥
कन्या मिथुन मीन वृष और धनु इन राशि पर शनि हो तव दुष्काल माया गाजाओं में परस्पर युद्ध हो ||१८|| आग्नेय वायव्य वारुण और महेन्द्र
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