________________
হামম্বাঙ্গেল
(२०७) पूर्वाभाद्रपदा पौष्ण्यं मघा मूलं पुनर्वसु ।। पुष्यं शनिर्यदा भुक्ते प्रयुंक्तेऽकारणं रणम् ॥१॥ छत्रभङ्गं देशभङ्ग-मुर्गी कुर्वीत चाकुलाम् । चतुष्पदा रोगयोगं शनिव्येसनिनो जनात् ॥२॥ उत्तरात्रितयं पैञ्यं रोहिणी रेवती तथा । शनिः श्रयति यद्यत्र भूमिकष्टं भवेत्तदा ॥३॥ मूल मघा ने रोहिणी रेवइ, हस्त पुनर्वसु जो शनि सेवह। चउपद मरे दुपद् संतावइ,सघली पृथवी चक्रचढावह ॥४॥ लोके पुनः- माहमासि वक्रे शनि, तो भडुली मुणि वत्त । पश्चिम घरसे आघ हुइ, एगह मुसल तत्तः ॥५॥ श्रावणे कृष्ण पक्षे च शनिवक्री यदा भवेत् । उत्पातस्तु तदा ज्ञेयो मासमध्ये न संशयः ॥६॥ श्रवणानिलहस्तााभरणीभाग्योपगः सुतोऽकस्य । प्रचुरसलिलोपगडां करोति धानी यदि स्निग्धः ॥७॥
पूर्वाभादपदा रेवती मघा मूल पुनर्वसु और पुष्य इन नक्षत्र पर शनि हो तो विना कारण युद्ध हो।॥ १ ॥ छत्रभंग और देशभंग हो, पृथ्वी भाकुल व्याकुल हो; पशुओंको और व्यसनी मनुष्योंको रोग हो ॥ २ ॥ तीनों उत्तरा मघा रोहिणी और रेवती इन नक्षत्र पर शनि हो तो भूमि पर कष्ट हो ॥ ३ ॥ मूल मघा रोहिणी रेवती हस्त और पुनर्वसु इन नक्षत्र पर शनि हो तो पशु में अधिक मरण हो, मनुष्योंको कष्ट हो, और समस्त पृथ्वी उपद्रव वाली हो ॥ ४ ॥ यदि माघ मासमें शनि वक्री हो तो पश्चिम में मेघका उदय होकर मुसलधार वर्षा हो ॥ ५॥ श्रावण कृष्ण पक्षमें यदि शनि वक्री हो तो एक मास के भीतर उत्पात हो इस में संशय नहीं ॥ ६ ॥ श्रवण स्वाति हस्त आर्द्रा और भरणी इन नक्षत्र पर शनि हो तो बहुत जलसे पूर्ण पृथ्वी होती है ॥ ७ ॥
"Aho Shrutgyanam"