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संग्रामाः प्रतिग्रामं गुडगोधूमचणकतंदुलशालिमसुरान्नघृता दिवस्तुव्यापारे लाभः पूर्वं सुभिक्षं परं मारिभयं सर्वदेशेषु पीडा व्याकुलता, अशुभं संवत्सरफलं मरिचशुंठिप्रमुख क्रयाणकालाभः ताम्रपित्तलमहता घृततैलादिर समहर्घता, कुंकणदेशे तृणमहिषीसमर्धता मालवमध्ये उपद्रवः परं राज्य: सुखं कटकविग्रहः पूर्वदेशे वस्त्रलाभः सर्ववस्तु समर्धम् । "इत्येतद् गौतमस्वामि' इत्यादि ॥ ५ ॥
कन्यायां यदा शनिस्तदा दुर्भिक्षं चतुर्दिशासु पिता पुत्रं विक्रीणाति, अन्ननाशः, जलवर्षा नास्ति, मरुदेशे शिवपुर्वी द्राविडदेशे राजपीडा छत्रभंगः, शेषाः सर्वे देशाः शुभाः, अर्बुदे सुभिक्षं, शीरोहीमध्येऽन्नलाभः, सर्वधान्यसंग्रहे द्विगुणो लाभः, मानवकं यावद् धान्यं रक्षणीयं पञ्चाद्विक्रयः, धातुवस्तुसमर्थ, उत्तमवस्तु महर्चे, अन्नभयं महावृष्टिः, त्रीणि क्रयाणकानि स
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मेघमहोदये
गमन, पातशाहीपन चलविचल हो परंतु अनाज सस्ता हो, शाक बंधके सदृश संग्राम हो, प्रत्येक गाँव में गुड गेहूँ चणा चावलं मसुर अनाज घी आदि वस्तु का व्यापार में लाभ हो, पहले सुभिक्ष पीछे महामारीका भय, सब देशमें पीडा व्याकुलता हो, संवत्सर का फल अशुभ, मिरच सोंठ आदि क्रय्याणकसे लाभ, तांबा पित्तल तेज, घी तेल आदि तेज, कोंकण देशमें तृण भैंस सस्ते, मालवामध्ये उपद्रव परन्तु राजसुख, सैना में विग्रह, पूर्वदेश में aa लाभ, सब वस्तु सस्ती ॥ ५ ॥
जब कन्या राशिका शनि हो तब दुर्भिक्ष, चारों दिशामें पिता पुत्र को बेचें, अन्न का नाश, जल वर्षा न हो, मारवाड शिवपुरी और द्राविडदेशमें राजपीडा छत्रभंग हो, बाकी सब देश सुखी रहें, आबु सुभिक्ष, शीरोहि मध्ये अन्नका लाभ, सब धान्यका संग्रह से दूना लाभ, नवमास तक धान्य संग्रह करना पीछे बेचना, धातु वस्तु सस्ता, उत्तम वस्तु तेज, मालवा देश
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