________________
वाताधिकारः
(५९)
अष्टयाम्यामभ्रशुभ-वातैर्वर्ष भवेच्छुभम् ॥८२॥ आषाढयां निर्मलञ्चन्द्रः परिवेषयुतोऽथवा । तदा जगत्समुद्धतुं शक्रेणापि न शक्यते ॥८३॥ कुहूतः षोडशे चाह्नि लक्षणं चिन्तयेदिदम् । अस्तं गच्छति तिग्मांशौ तस्माद्वर्ष शुभाशुभम् ॥८४॥ आषाढयां पूर्ववाते च सर्वधान्या मही भवेत् । आग्नेयवाते लोकाः स्युरस्थिशेषास्तु रोगतः ॥ ८५ ॥ दक्षिणे पवने राज्ञां महायुद्धं परस्परम् । नैर्ऋते निर्जला भूमिर्धान्यसङ्ग्रहकारणम् ॥८६॥ वारुणे प्रबला वृष्टिर्धान्यनिष्पत्तिहेतवे । वायव्ये मत्कुणास्तीडा मशकाद्यास्तथेतयः ॥ ८७ ॥ उत्तरे पवने लोका गीतमङ्गलपूरिताः ।
है ॥ ८२ ॥ आषाढ पूर्णिमा को चंद्रमा निर्मल हो अथवा मंडल सहित हो तो जगत् का उद्धार करने के लिये इंद्र भी शक्तिमान् नहीं होता ॥ ८३ ॥ आषाढ पूर्णिमा के दिन सूर्यास्त समय इन लक्षणों का विचार करें, जिस से शुभाशुभ वर्ष जान सकें ॥ ८४ ॥ सूर्यास्त समय पूर्व दिशा का वायु चले तो पृथ्वी सन प्रकार के धान्य वाली हो । आग्नेय कोण का वायु चले वो लोक रोग से अस्थिशेष हो जाय याने रोग अधिक चले ॥ ८५ ॥ दक्षिण का पत्रन चले तो राजाओं का परस्पर बड़ा युद्ध हो । नैर्ऋत्य कोण का वायु चले तो पृथ्वी जल रहित हो, इस लिये धान्य का संग्रह करना उचित है ॥ ८६ ॥ पश्चिम दिशा का वायु चले तो धान्य की प्राप्ति के लिये बहुत वर्षा हों । वायव्य कोण का वायु चले तो खटमल टीडी मच्छर आदि ईति का उपद्रव हों ॥ ८७ ॥ उत्तर दिशा का वायु चले तो लोगों में गीत मंगल अधिक हों और ईशान कोण का वायु चले तो सब
" Aho Shrutgyanam"