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मेघमहोदये मीनेऽल्पवृष्टिरवनीश्वरयुद्धयोगः ,
पीडा जनस्य मकरानरकानुरूपा ॥४॥ इति ॥ अथगुरूदयमासफलम्- --- जीवोऽभ्युदेति यदि कार्तिकमासि वहि.
लोके न वृष्टिरपि रोगनिपीडनं च । मार्गेऽपि धान्यविगमं सुखमेव पौषे, .
नीरोगता सकलधान्यसमुद्भवश्च ॥५॥ माघे तथैव परतो भुवि खण्डवृष्टि
चैत्रे विचित्रजलवृष्टिरतोऽपि राधे । सर्व सुखं जलनिरोधनमेव शुक्रेड__ प्याषाढके नृपरणोऽन्नमहर्घता च ॥६॥
आरोग्यं श्रावणे वर्षा बहुला सुखिनो जनाः । भाद्रे चौरा धान्यनाश आश्विनः सुखदः स्मृतः इति । शमें वृष्टि अधिक और अन्न भाव तेज हो । मीनराशिमें बृहस्पति का उदय हो तो थोड़ी वर्षा, राजाओं में युद्ध का योग और मनुष्यों को मगर से नरकके समान पीडा हो ॥ ४ ॥ इति ।
कार्तिक मासमें बृहस्पति का उदय हो तो जगत्में गरमी पडे, वर्षा न हो और रोगपीडा हो । मार्गशीर्ष में उदय हो तो धान्य का विनाश हो । पौघमें उदय हो तो सुख नीरोगता और सब धान्य पैदा हो ॥ ५॥ माव और फाल्गुनमें उदय हो तो पृथ्वीपर खंण्डवर्षा हो । चैत्रमें उदय हो तो विचित्र जलवृष्टि हो । वैशाखमें उदय हो तो सब प्रकारके सुख । ज्येष्टमें उदय हो तो जलका निरोध । आषाढ में उदय हो तो राजाओंमें युद्ध और अन्नभाव तेज हो ॥६॥ श्रावणमें उदय हो तो आरोग्य, वर्षा अधिक और सब लोग सुखी हों । भादोंमें उदय हो तो चोर का उपद्रव और धान्यका नाश हो । पाश्विनमें उदय हो तो सुखदायक हो ॥ ७ ॥
"Aho Shrutgyanam"