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मेघमहोदये
(१९०)
वाण भावेइ | रुद्रदेवब्राह्मणकृते मेघमालायां पुनः
मेघास्तु कीदृशा देव ! कथं वर्षन्ति ते भुवि । कति संख्या भवेत् तेषां येन मे प्रत्ययो भवेत् ॥ १ ॥ ईश्वर उवाच - शृणु देवि ! यथा तथ्यं वर्णरूपं तु यादृशम् । मन्दरोपरि मेघास्ते राजानो दश कीर्त्तिताः ||२||
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कैलाशे दश विज्ञेयाः प्राकारे कोटजे देश । उत्तरे दश राजानः श्रृंगवेरे तथा दश ||३|| पर्यन्ते दशराजानो दशैव हिमवन्नगे ।
गन्धमादन शैले च राजानो दश वारिदाः ||४|| अशीतिमेघा विख्याताः कथितास्तव पार्वति । । अन्यत् किं पृच्छसि पुनर्लोकानां हितकारिणि ! ||५|| अशीतिमेघमध्ये तु स राजा पट्टबन्धतः । गुरुणा राशिसंयोगाद् यः पुरस्क्रियते जनः ||६||
है और जिम्ह नामका महामेघ बहुत वार बरसे तत्र एक वर्ष तक पृथ्वीको रसवाली करे या न भी करे ।
हे देव! मेव कैसे हैं? पृथ्वी पर वे कैसे वर्षते हैं ? उनकी कितनी संख्या है? इनका वर्णन आपके कहनेसे मुझको विश्वास हो ॥ १ ॥ इश्वर बोले- हे पार्वति में इनका वरण और रूप जैसा है वैसा यथार्थ कहता हूँ- मंदर (मेरु) पर्वत पर मेघके दश राजाओं निवास करते हैं ॥ २ ॥ कैलास पर दश, प्राकर कोटज पर दश, उत्तर में दश और श्रृंगवेरपुर में दश मेघाधिपति हैं ॥ ३ ॥ पर्यन्तमें दश, हिमवनपर्वतनें दश और गंधमादन पर्वत पर दश मेत्राधिपति हैं ॥ ४ ॥ हे पार्वति ! सब अस्सी मेघ प्रख्यात हैं ये तेरे लिये कहा । हे लोगोंके हित करनेवाली ! और दूसरा क्या पूछती है ? || ५ || ये अस्सी मेत्रके मध्य में वह पबंध राजा है जो बृहस्पति के
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