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शनैश्चरचारफलम्
सद्यो योधाय गद्येन विस्तरेण निगद्यते । . शनैः शनैः शनेचार-फलं शास्त्रविमर्शतः ॥१॥ : मेषराशौ यदा सौरिस्तदा पश्चिमायां राजविग्रहः, वस्तुमहर्घला, नृपतेर्भयः, गुर्जरगौडसौराष्ट्रेषु धान्यमहर्घता द्विगुणोऽनव्यापारे लाभः, छत्रभंगो राश्यर्द्धभोगात्परत उत्पातबहुला मही, तथा महीनदीपाचे पीडा राज्ञामुपद्रवा:,मेघा यहवः, सप्त धान्यानि युगन्धर्यादीनि संगृह्यन्ते, मासचतुष्टयानन्तरं विक्रये द्विगुणलाभः, गुजरदेशेऽहिफेनगुडशर्कराखण्डगोधूमथार्जरचवलाविक्रये लाभः, सुवर्णरूप्यलाभा, प्रथम शनैश्चरः सप्तमासराशिभोगतः पश्चादुत्पातचालकः, भूकपगर्जितं क्वचित्, फाल्गुने उपद्रवस्तदा वस्तुमहर्घता, व्यापारे जयः, मालवदेशे घृतशर्करातैलटोपरारायण इत्येतानि महर्घाणि कटकचालकोऽष्टौ मासान् । ...इत्येतद् गौतमस्वामि-भाषितं राशिमण्डलम् । . . . ... अनेक शास्त्रोंसे विचार कर शनैश्वर का फलको शीघ्र ही जाननेके लिए गद्यरीतिसे विस्तार पूर्वक कहा जाता है ॥ १॥ मेषराशि का शनि हो तो पश्चिममें राजविग्रह, वस्तु महँगी, राजाका भय, गुजरात गोड और सोरठ देश में धान्यभाव तेज, धान्य का व्यापारमें दूना लाभ, राशिके १५ अंश भोगने के पीछे छत्रभंग, पृथ्वी में बहुत उत्पात, महीनदी के तटपर दुःखपीडा, राजाभोका उपद्रव, वर्षा अधिक, जुमार आदि सात धान्यका संग्रह करना उचित है चार मास पीछे बेचनेसे दूना लाभ हो, गुजरात देशमें अफीम गुड सकर खांड गेहूँ बाजरा चौला आदि बेचनेसे लाभ, सोना रूपासे लाभ, पहले शनैश्चर. सातमास तक राशि भोगने बाद उत्पात चाले, कहीं भूकंप गर्जना हो, फाल्गुमें उपद्रव हो तो वस्तु तेज, व्यापारमें जय, मालवादेशमें घी स. कर. तेल टोपरा रायसा (खीरी) ये तेज भाव, पाठमास कटक (सैना) चाले।
"Aho Shrutgyanam"