________________
गुरुवारफलम..
(.१९३) जठरनिवासिने मेघराजाय आगच्छ २ स्वाहा । ॐ ह्रींकुवेररांजाय शृंगवेरनिवासिने आगच्छ २ स्वाहा। जापोऽस्य दशसाहस्रो दशांशो होम एव च । पुष्पैश्च धवलै रक्तैः करवीरसमुद्भवः ॥२१॥ ततः पुष्पैः सुगन्ध्याढयै-चयेन्मेघसप्तकम् । .. नद्यां चैध वने गत्वा मेघानावाहयेद् बुधः ॥२२॥ : शिवालये तडागे वा पुनर्मेघान् विसर्जयेत् । दिव्यमेघाश्च सप्तैते कुलपर्वतवासिनः ॥२३॥ सर्वेष्वमीषु मेवेषु राजानो द्वादश स्मृताः ।.. प्रबुद्धा नन्दशालाद्या गुरुणैव प्रयोजिताः॥२४॥ . . एवं गुरोचारवसेन नागा, अधिष्ठितास्तर्यदि चोदवाहा। कुर्वन्ति वर्षी प्रतिवर्षमन्त्र, संवत्सराख्या परिवर्तनेन ॥२५॥ इति श्रीमेघमहोदये वर्षप्रयोधापरनाम्नि महोपाध्याय श्रीमेघविजयगणिविरचिते संवत्सराधिकारश्चतुर्थः ।
................
था लाल कनेर के फूलों के साथ दशांश हवन करें ॥२१॥ फिर सुगंन्धित पुष्पों से सात मेघों का पूजन करें । नदी या वनमें जाकर विद्वान् लोग मेघों का माहवान करें ॥ २२॥ फिर शिवालय या तलाव पर जाकर मेघों को विसर्जन करें । ये सात दिव्य मेघ कुलपर्वत के निवासी हैं ॥२३॥ इन सब प्रकार के मेवों में बारह राजा हैं, वे प्रबुद्ध नन्दशाल आदि नामवाले हैं ॥२४॥ इस तरह बृहस्पति के चलनवशसे मेधाधिपति है वह संवत्सर का परिवर्तन से प्रतिवर्ष वर्षा करता हैं ॥ २५॥ .. इति श्रीसौराष्ट्रराम्यान्तर्गत-पादलिप्तपुरनिवासिना पण्डितभगवानदासाख्य जैनेन विरचितया मेघमहोदये बालावबोधिन्याऽऽर्यभाषया टीकिता
- श्चतुर्थः संवत्सराधिकारः ।
"Aho Shrutgyanam"