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गुरुवारफलम्
दिग्भागे च विदिग्भागे प्रत्येकं दश नीरदाः । उन्नमय्य प्लावयन्ति मर्त्यलोके जलैर्महीम् ॥७॥ कमलेऽष्टदले वृष्टयै प्रतिष्ठाप्य पयोधरान् । धूपदीपेश्व कुसुमै- नैवेद्यैः परिपूजयेत् ॥८॥ सिंहको विजयश्चैव कम्बलोऽथ जयद्रथः । धूम्रः सुस्वामिभद्रौ च मातङ्गो वरुणस्तथा ॥ ६ ॥ त्रिलोचनपतिश्चैव मेघाः प्राच्याममी दश । आनन्दः कालदंष्ट्रश्च शूकरो घृषभुक् तथा ॥ १० ॥ मृगो नीलो भवः कुम्भो निकुम्भो महिषस्तथा । दश मेघा दक्षिणस्यां प्रायोऽमी वृष्टिकारिणः ॥ ११ ॥ कुञ्जरः कालमेघश्च यामुनः कालकान्तकौ । दुन्दुभिर्मेखलः सिन्धुर्मकर छत्रकस्तथा ॥ १२ ॥ पश्चिमायाममी मेघा दश वर्षाविधायिनः । मेघनादोऽथ नृपति-स्त्रिलोचनसुधाकरौ ॥१३॥ दण्डिनश्च सितालश्च त्रैकालिकजलस्तथा ।
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साथ राशिसंयोग से आगे किया जाता है ॥ ६ ॥ प्रत्येक दिशा और विदिशा में दश दश मेवाधिपति हैं. वे मर्त्यलोकमें उदय होकर जलसे पृथ्वी को तृप्त कर देते हैं ॥ ७ ॥ वर्षाके निमित्त मेधाधिपतिको अष्टदल कमल के बीच स्थापन कर धूप दीप फूल और नैवेद्यसे पूजा करे ॥ ८ ॥ सिंह विजय कंबल जयद्रथ धूम्र सुस्वामी भद्र मातंग वरुण ॥ ६ ॥ और त्रिलोचनपति ये दश मेव पूर्व दिशामें रहते हैं, आनन्द कालदंष्ट्र शूकर वृषभुक् ॥ १० ॥ मृग नील भव कुंभ निकुंभ और महिप ये दश मेत्र दक्षिण दिशा में रहकर वर्षा करते हैं ॥ ११ ॥ कुंजर कालमे यामुन कालक अन्तक दुंदुभि मेखल सिंधु मकर और छत्रक ये दश मेघ पश्चिममें रहकर वर्षाकरते हैं । मेघनाद त्रिलोचन सुधाकर ॥ १३ ॥ दंडी सिताल त्रैकालिक
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