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गुरुचारफलम्
(१८३)
अथ गुरूदयद्रादशराशिफलम् ---- मेषे गुरोदयतस्त्वतिवृष्टिरेव,
दुर्भिक्षमुत्तममृतिवृषभे सुभिक्षम् । पाषाणशालिमणिरत्नमहर्घभावः,
स्वावस्थया मिथुनके गणिकासु पीडा ॥१॥ स्यात् कर्कटे जनमृतिजलवृष्टिरल्पा, .
सिंहे तथैव नवरं बहुधान्यलाभः । कन्यास्थितस्य च गुरोरुदये शिशूनां,
पीडा तथैव गणिकासु च वृद्धलोके ॥२॥ काश्मीरचन्दनफलादिमहर्घता स्या
ल्लाभो महान् व्यवहृतौ च तुलावलम्बे । दुर्भिक्षतालिनि धनुष्यपि चाल्पवर्षा, .. लोके रुजो मकरके बहुधान्यवृष्टिः ॥३॥ कुम्भे गुरोरुयतः सकलेऽपि देशे,
वृष्टिपनेऽपि च घनेऽतिमहर्घमन्नम् ।
मेषराशि में गुरु का उदय हो तो अतिवृष्टि दुर्भिक्ष और उत्तमजनका मरण हो । वृषराशिमें उदय हो तो सुभिक्ष हो तथा पाषाण चावल मणि और रत्न का भाव तेज हो । मिथुनराशिमें उदय हो तो अपनी अवस्थासे वेश्याओंमें पीडा हो ॥ १ ॥ कर्कराशि में उदय हो तो मनुष्योंका मरण और थोड़ी वर्षा हो । सिंहराशि में उदय हो तो धान्य का बहुत लाभ हों। कन्याराशिमें उदय हो तो बालकों को वेश्या को तथा वृद्धों को पीड़ा हो । २. ॥ तुलाराशिमें उदय हो तो काश्मीर चंदन फल आदि का भाव तेज हो, तथा व्यवहार में बड़ा लाभ हो । वृश्चिकमे उदय हो तो दुर्भिक्ष हो । धनुराशिमें उदय हो तो थोड़ी वर्षा । मकराशिमें उदय हो तो लोकमें रोग धान्य अधिक और वर्षा श्रेष्ठ हो ॥३॥ कुंभराशिम उदय हो तो समस्त दे
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