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गुरुवारफलम्
( १८१)
एकस्मिन्नपि वर्ष चे-ज्जीवो राशित्रयं स्पृशेत् । तदा भवति दुर्भिक्षं व्रतपूर्णा वसुन्धरा ॥११४॥ गुरौ महति नक्षत्रे राशिस्वामिनि सहले । मासास्त्रयोदश तदा समर्घ धान्यमुच्यते ॥१९॥ बालबोधे तु सप्तविंशतिनक्षत्रभोगे गुरुफलमेवम्-..
"अश्विन्यां गुरौ सुवृष्टिः सुभिक्षं शीतपीडा॥१॥भर ण्यां दुर्भिक्ष विफल वर्ष राजभयम्॥२॥ कृत्तिकायां न वर्षा विप्रपीडा।।३॥ रोहिण्यांन वृष्टिश्चतुष्पदविनाशः॥४॥मृगशीर्षे जने रोगो धान्यमहर्षता ॥५॥ आायां प्रचुरं जलं कासतिलविनाशः॥६॥ पुनर्वसौ आरोग्य सुभिक्षं सुवृष्टिः सर्वधान्यनिष्पत्तिः ॥७॥ पुष्ये लोके नेत्ररोगोवस्त्रमहर्घता रोगा बलीपर्दामहर्घाः॥८॥ आश्लेषायांसुभिक्ष॥९॥मघाय न वर्षा , तृणजातं धान्यमपि दुर्लभ, श्रावणद्वये न जलवर्षा चतुष्पदमहर्घम् ॥ १०॥ पूर्वाफाल्गुन्यां श्रावणे भाद्रपदे हो ॥ १६३ ॥ यदि बृहस्पति एक ही वर्षमें तीन राशिको स्पर्श करे तो दुर्भिक्ष हो और पृथ्वी वलसे पूर्ण हो । १६४॥ यदि बहस्पति बहत्संज्ञक नक्षत्र पर हो तथा राशि का स्वामी और बलवान् हो तो तेरह मास धान्य सस्ता हो ॥ १६५ ॥ .:अश्विनीमें बहस्पति आनेसे वा अच्छी, मुंभिक्ष और शीत पीडा हो । भरणी में दुर्भिक्ष, वर्ष फलरहित और राजभय हो । कृत्तिका वर्षा न बरसे तथा ब्राह्मणको दुःख । रोहिणीमें वर्षा नहीं और पशुओं का विनाश । मृगशीर्ष मनुष्योंको रोग और धान्य भाव तेज । आमें बहुत वर्षा, कपास तिजका नाश ! पुनर्वसमें आरोग्य सुभिक्ष वर्षा अच्छी और सब धान्य पैदा हो । पुष्यमें लोगोंको नेत्र रोग, वस्त्रकी तेजी, रोग प्राप्ती और बैल म.गे हों ! आश्लेषामें सुभिक्ष । मघामें वर्षा नहीं , घास धान्य भी हुर्लभ,
"Aho Shrutgyanam"