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गुरुचारफलम्
(१७९)
श्रवणे वा धनिष्ठायां वारुणे गुरुलङ्गमे । . सुभिक्षं क्षेममारोग्यं बहुसस्या च मेदिनी ॥१८३॥ पूर्वोत्तराभाद्रपद-योरनावृष्टिभयादिकम् । पोष्णाश्विनी भरणीषु सुभिक्ष धान्यसम्पदा ॥१८४॥ मृगादिपश्चकं चित्रा वायमेवाष्टकं तथा । नक्षत्रेष्वशुभं जीवे शेषेषु शुभमादिशेत् ॥१८॥ अथ गुरोश्चतुष्वानि । अर्घकाण्डे पुनस्त्रैलोक्यदीपकग्रन्थेसौम्यादौ पञ्चके स्यात् सुरगुरुरभितो दोस्थ्यदौर्गत्यकर्ता, पौत्र्यादी वा चतुष्के भवति समुदितः सौस्थ्यसद्भिक्षदाता । चित्रायेवाष्टधिष्ण्येऽप्यकणमतिभयं सन्ततं संविधत्ते, कर्णादौ धिष्ण्यपति जगति वितनुते सौख्यसम्पत्तिसौस्थ्यम् ।। सारसंग्रहे पुन:दशकं पञ्चकं चैव चतुष्काष्टकमेव च । एक मास वर्षा न हो ॥ १८२ ॥ श्रवण धनिष्टा और शतभिषा नक्षत्र पर बृहस्पति हो तो सुभिक्ष क्षेम आरोग्य हो और पृथ्वी बहुत धान्यवाली हो ॥ १८३ ।। पूर्वाभाद्रपदा या उत्तराभाद्रपदा नक्षत्र पर बृहस्पति हो तो अनावृष्टि और भय हो । रेवती अश्विनी और भरणी नक्षत्र पर बृहस्पति हो तो मुभिक्ष और धान्य सम्पदा अधिक हो ॥१८॥ मृगशीर्ष अादि लेकर पांच और चित्रादि आठ नक्षत्र इनमें बृहस्पति हो तो अशुभ और बाकीके. नक्षत्र पर बृहस्पति हो तो शुभ होता है ॥ १८५ ॥ ... मृगशीर्षादि पांच नक्षत्र पर बृहस्पति हो तो दु:ख और दुर्भिक्षकारक है, मघादि चार नक्षत्र पर बृहस्पति हो तो मुख और सुभिक्ष कारक है. चित्रादि आठ नक्षत्र पर बृहस्पति हो तो धान्य प्राप्ति न हो, भय अधिक तथा दुःख हो. और बाकी के श्रवणादि नक्षत्र पर बृहस्पति हो तो जगत्में मुख संपत्ति दायक होता है ॥ १८६ ॥ श्रवणादि नक्षत्र से क्रमसे दश
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