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गुरुचारफलम् धनक्षयस्तदा लोके चौराद् राजापि रोषितः ॥१७०।। निराधारा प्रजापीडा ग्रहभूतादिदोषतः । तुलाभाण्डं गुडः खण्डा अर्घ ददति वाञ्छितम् ॥१७१॥ लवणं घृततैलादि-सर्वधान्यमहर्घता । कर्पासस्थार्घसम्प्राप्तिाभस्तेषां चतुर्गुणः ॥१७२॥ वके शक्रेणा पूज्ये जगति गतिरियं वास्तवी प्रास्तवीर्या,
तत्वं मत्वा तदैतद् वदतजनहितं धीधनाः सावधानाः। मूलं लोकेऽनुकूलं सुकृतविकृतयः सूर्यमुख्या ग्रहाः स्युः,
तेऽपिप्रायोऽनुसारं दधति ननु गुरोःसत्फलेवाऽफलेऽपि।१७३। अथ गुरुनक्षत्रभोगविचार:
अथ नक्षत्रभोगेन गुरोर्याक्फलं भवेत् । तदुच्यते वर्षबोधे निर्णयाय महीस्पृशाम् ॥१७४॥ कृत्तिकारोहिणीऋक्षे यदा तिष्ठेद् बृहस्पतिः । मध्यमात्र भवेद् वृष्टिः सस्यं भवति मध्यमम् ॥१७॥ भूतं आदिके दोषोंसे दुःख हो, तुलाभांड गुड खांड ये इच्छित लाभ दें ॥१७१ ॥ नमक धी तेल और सब धान्य तेज हों, कपाससे चौगुना लाभ हो ॥१७२॥ जगत् में बृहस्पति बक्री होने पर वास्तविक प्रबल गति होती है । हे सावधान बुद्धिमानों. इस तत्वोंको मान कर मनुष्यों का हितको कहो । लोक में शुभाशुभको बतलानेवाले अनुकूल मूलरूप सूर्यादि ग्रह हैं वे बृहस्पतिका सफल पा निष्फल में भी ग्रहानुसार फल दायक हैं ।।१७३।। इति मीनराशि स्थगुरु व फल ।
बृहस्पतिका नक्षत्रके संयोगसे जैसा फल हो वैसा वर्षाका निर्णय करनेके लिये वर्षबोध प्रथमें कहा जाता है ॥१७४॥ जिस समय बृहस्पति कृतिका तथारोहिणी नक्षत्र पर हो उस समय मध्यम वर्षा हो और मध्यम धान्य पैदा हो ॥ १७५ ॥ मृगशीर्ष और आर्द्रा नक्षत्र पर बृहस्पति हो तो
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