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मेघमहोदये
मकरराशिस्थगुरुवक्रफलम्मकरस्थो यदा जीवः करोति वक्रगामिता। आरोग्यं कुरुते धान्यं समर्घ नात्र संशयः ॥१६५॥ तुलाभाण्डानि धान्यानि सर्वाणि परिरक्षयेत् । षण्मासान्ते च सम्प्राप्ते विक्रये लाभमामुयात् ॥१६॥ कुंभराशिस्थगुरुवक्रफलम्----
कुम्भराशिगतो जीवः करोति यदि वक्रताम् । 'आरोग्यं सर्वस्वस्थत्वं राज्ञां श्रीर्जयसम्भवः ॥१६७॥ सर्वधान्येषु निष्पत्तिः सर्वधान्यस्य विक्रयः। घृतं तैलं तुलाभाण्डं मासाष्टके च संग्रहः ॥१६८॥ पश्चाद् विक्रयतो लाभः सुभिक्षं निर्भया जनाः । । पूजा गोब्रिजदेवानां बुद्विायेऽतिनिर्मला ॥१६६॥ मीनराशिस्थगुरुवक्रफलम्..
मीनराशिगतो जीवो वक्रतामुपयाति चेत् । सस्ते हो इसमें संशय नीं ॥ १६५॥ तुलाभाण्ड और संब धान्य का संग्रह करना, छ महीने के बाद उसको बेचने से लाभ होगा ॥ १६६ ॥ इति मकरराशिस्थगुरुवक्र फल ॥ ____ जब कुंभराशिका बृहस्पति वक्री हो तब मारोग्य स्वस्थता और राजाओंको जय प्राप्त हो ॥ १६७ ॥ सब धान्यकी प्राप्ति, सब धान्य का व्यापार, घी तेल तुलावर्तन आदि आठवें महीने संग्रह करना ॥ १६८ ।। पीछे बेचनेसे लाभ होगा. सुभिक्ष और लोग निर्भय हो, गौ ब्राह्मग देवों की पूजा और न्यायमें बुद्धि अधिक निर्मल हो ॥ १६६ ॥ इति कुंभराशि स्थगुरु वक्र फल ॥
. जब मीनराशिका बृहस्पति वक्री हो तब लोकमें धनका विनाश तथा चोरोंसे रानाभी क्रोधित हो ॥ १७० ॥ प्रजाको निराधारपन और ग्रह
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