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गुरुवारफलम्
तुलाभाण्डसुगन्धीनि कसलवणानि च ॥१५८ ।। समर्घाणि भवन्त्येव मार्गशीर्षव्यतिक्रमे । दशमासात्यये लाभो द्विगुणस्तत्र सम्भवेत् ॥१५९॥ वृश्चिकराशिस्थगुरुफलम् ---- वृश्चिकं यदि सम्प्राप्य वकं याति बृहस्पतिः । अन्नस्य संग्रहस्तत्र धान्यादेस्तु विशेषतः ॥१६॥ कर्पासस्य घृतादेर्वा मार्गशीर्षे च विक्रये। . द्विगुणो जायते लाभ-स्तदा संग्रहकारिणः ॥१६१॥ धनराशिस्थगुरुवक्रफलम् --- धनराशिगतो जीवः करोति वक्रतां यदा । अचिरेणैव कालेन सर्वधान्यसमर्थता ॥१६॥ गोधूमचणकादीनि धान्यानि च क्रयाणकम् । समर्धाण्यन्यवस्तूनि गुडश्च लवणादिकम् ॥१६३॥ चैत्रादिसंग्रहस्तेषां मार्गशीर्षादिविक्रयः । सर्वाणि लाभ लभते मासैकादशकात्यये ॥१६४। रान्त दूना लाभ हो ॥ १५८-६॥ इति तुलाराशिस्थगुरु वक्र फल ।
जब वृश्चिकराशिका बृहस्पति वक्री हो तब अन्नका और विशेष कर धान्यका संग्रह करना, उसको तथा कपास और घी को मार्गशीर्घमें बेचने से दूना लाभ हो ॥ १६०-१ ॥ इति वृश्चिकराशिस्थगुरु वक्र फल । ___जब धनराशिका बृहस्पति वक्री हो तब थोड़े ही दिनोंमें सब धान्य सस्ते हों ॥ १६२ ॥ गेहूँ चणा आदि धान्य और करियांना, गुड लवण
आदि दूसरी वस्तुओंका भाव सस्ता हो ।। १६३ ॥ चैत्रके आदिमें उसका संग्रह करना और मार्गशीर्षके आदिमें उसको बेचना, ग्याहरह मास जाने बाद सब वस्तु लाभदायक होगी ॥१६४॥ इति धनराशिस्थगुरुवक्र फल। . जब मकरराशिका बृहस्पति वक्री हो तब आरोग्य हो और धान्य
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