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(१८२)
मेघ महोदये
वा न वर्षा ||११|| उत्तराफाल्गुन्यां गावो बहुक्षीरा आरोग्यं सर्वधान्यनिष्पत्तिः ॥ १२ ॥ हस्ते सुभिक्षं ||१३|| चित्रायां तिलकर्पासचकमहर्घता ॥ १४ ॥ स्वातौ सर्वत्र धान्यनिव्यत्तिः ।। १५ ।। विशाखायां सर्वधान्यसमर्घता लोकेऽग्निपीडा ॥१६॥ अनुराधायां सुभिक्षं लोकोत्सवः ॥ १७॥ ज्येष्ठायां न वृष्टिजनपीडा ॥ १८॥ मूले सुभिक्षमारोग्यम् ॥ १९ ॥ पूर्वाषाढायां चणकगोधूमतिलविनाशः ॥ २० ॥ उत्तराषाढायां न वर्षा गुडघृतलवण महता ॥ २१ ॥ श्रवणे गवां तथा वृद्धानां पीडा ||२२|| धनिष्ठायां रोगबहुला अल्पवृष्टिः प्रजाविरोधः ||२३|| शतभिषा भिजिद वर्षा महती || २४|| पूर्वभाद्रपदायामलसीतिलमाषादिविनाशोऽतिशीलम् ||२५|| उत्तराभाद्रपदायां घनो न वर्षति, उत्तमलोक पीडा । २६ । रेवत्यांन वर्षा धान्यशेषः " |२७|
श्रावण भाद्रों में वर्षा न हो और पशु महँगे हों । पूर्वाफाल्गुनी में श्रावण भादो वर्षो न हो । उत्तराफाल्गुनी में गौ बहुत दूध दें, आरोग्य और सब धान्यकी प्राप्ति हो । हस्तमें सुभिक्ष | चित्रामें तिल कपास और चणा ये तेज भाव हो । स्वातिमें सब जगह धान्यकी प्राप्ति । विशाखा में सब धान्य सस्ते और लोक में अमिका उपद्रव हो । अनुराधा में सुभिक्ष और लोक में उच्छा हो । ज्येष्ठामें वर्षा न बरसे और मनुष्योंको दुःख हो । मूलमें सुभिक्ष और आरोग्य हो पूर्वाषाढा चणा गेहूँ तिलका विनाश हो । उत्तराघाटामै वर्षा थोड़ी, गुड घी और नमक ये महँगे हो | श्रवण में गौएं को और वृद्ध जनको पीडा । धनिष्ठा में रोग अधिक, वर्षा नहीं और प्रजामें विरोध । शतभिषा और अभिजित् में वर्षा अधिक | पूर्वाभाद्रपद में अलसी तिल उर्द आदिका विनाश और अधिक ठंडी । उत्तराभाद्रपद में वर्षा न बरसे और उत्ता लोगोंको पीडा । रेवतीमें बृहस्पति हो तो वर्षा न हो और धान्यकी प्राती न हो | इति ॥
"Aho Shrutgyanam"