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मेघमहोदये कचिदीतिः क्वचिद् भीतिः कचिद् धृद्धिर्जलं. कचित् ॥२१॥ श्रावणान्दे धरा भाति त्रिदशस्पर्द्धिमानदैः । धरा पुष्पफलैर्युक्ता परिपूगावरादिभिः ॥२२॥ अब्दे भाद्रपदे वृष्टिः क्षेमारोग्य कचित् काचित । सर्वसस्यसमृद्धिः स्याद नाशमेत्यपरं फलम् ॥२३॥ अब्दे त्वाश्वयुजेऽत्यर्थ सुखिनः सर्वजन्तवः ।. . मध्यम पूर्वसस्यं स्थात् परं पूर्ण विपच्यते ॥२४॥ पाठान्तरं जीर्णग्रन्थेषु । मेषराशिस्थगुरुफलम्-. मेषराशौ यदा जीवाश्चैत्रसंवत्सरस्तदा । । प्रबुद्धनामा जलदो वर्षा च सर्वतोमुखी ॥२५॥ सुभितं विग्रहो राज्ञां समर्थ वस्त्रकर्पटम् । हेमरूप्यं तथा तानं कर्पासंच प्रवालकम् ॥२६॥ मञ्जिष्ठानारिकेलं च पट्टसूत्रे समर्थता। काश्यं लोहं तथैवेक्षु-पूगादीनां च संग्रहः ॥२७॥
अश्वपोडा महारोगो द्विजानां कष्टसम्भवः । : २१॥ श्रावण वर्ष पृथ्वी देवों की स्पा करनेवाले मनुष्यों ले सुशोभित हो, तथा फल फूल और यज्ञोंते पूर्ण हों ॥ २२ ॥ भाद्रपदधर्षमें वर्षा हो, कहाँ कहीं क्षे। और आरोग्य हों, सब धान्यकी वृद्धि हो परंतु फलकी हानि हो ॥२३॥ आश्विनवर्षमें सब प्राणी बहुत सुखी हों, प्रथम मध्यम खेती हो और पीछे से पूर्ण खेती हो ।। २४ ॥
- मेषराशि में जब बृहस पति हो तब चैत्रसंवत्सर कहा जाता है। उसमें प्रबुदनानका मेव सब ओरसे वर्षा करता है ॥ २५ ॥ सुभिक्ष, राजाओंमें विरोष बत्र कर्पट सोना चांदी तांबा कयास और मूंगे ये सस्ते हों ॥ २६॥ . मँजी 3 श्रीफल और रेशमीवस्त्र सस्ते, कांसा. लोहा ईक्षु और सुपारी प्रा.. दिका संग्रह करना ॥ २७ ॥ घोड़ोंको पोडा, रोग अधिक; बाझगोंको कष्ट
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