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मात्र फलमि पश्चाद् भाद्रपदे पुनः ॥ २८ ॥ गोधूमशा लिमाषान: माज्यस्याग्रे रुमर्धता । दक्षिणस्यामुत्तरस्यां खण्डवृष्टिः प्रजायते ॥ २९ ॥ दक्षिणोत्तरयोदेशे छत्रभङ्गोऽपि कुत्रचित् । दुर्भिक्षमपि परामाला आश्विने फाल्गुने तथा ||३०|| पश्चात् सुभिक्षं द्वौ मासौ नाना मेघो जलेन्द्रकः । कार्त्तिके मार्गशीर्षे च कर्पासान्नमहता ॥ ३१ ॥ मेदपाटे राजपीडा देशभङ्गोऽल्पवर्षणम् । लोकाः सरोगा दुर्भिक्ष पौषे रसमहर्घता ||३२|| वाणिज्ये संशयो लाभे वैशाखे गुर्जरे रणः । छत्रभङ्गस्तथाषाढे श्रावणे वा भयं पथि ॥३३॥ नवीनो जायते राजा क्वचिन्मेघोऽपि कार्त्तिके । धान्यानि संग्रहे लाभ - स्त्रिगुणो मासि मे ||३४|| अब्दमध्ये यदा जीवः क्रमाद् राशित्रयं स्पृशेत् ।
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यह तीन मास के फल है; पीछे भाद्रपद में ॥ २८ ॥ गेहुँ चावल उर्द और घी सस्ते हों, दक्षिण तथा उत्तर में रण्डवृष्टि हो ॥ २६ ॥ दक्षिण तथा उत्तरदेशमें कहीं छत्रभंग और अश्विनले फाल्गुन तक छ महिने दुर्भिक्ष रहे ॥ ३० ॥ पीछे दो मास सुभिक्ष तथा जलेन्द्र नामका मेव बरसे। कातिक और मार्गशीर्ष मास में कपास तथा अनाजकी तेजी हो ॥ ३१ ॥ मेदपा में राज्यपीडा; देशभंग तथा थोड़ी वर्षा हो; लोकमें रोग और दुर्भिक्ष हो । पौष में रस तेज ॥ ३२ ॥ व्यापारियोंको लाभमें संदेह, वैशाख में गुजरात देश युद्ध, आषाढ या श्रावण में छत्रभंग और मार्ग में भय हो ॥ ३३ ॥ नवीन राजा हो; वहीं कार्तिकमें भी वर्षा हो; धान्यका संग्रह करे तो पांच वें मास में तीगुना लाभ हो ॥ ३४ ॥ एक वर्षमें यदि गुरु क्रम से तीन राशि को स्पर्श करे तो पृथ्वी करोडों मुमटो से रंङमुगड हो । ३५ ॥ जलचर
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