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गुरुवारडम्
गोधूमशालिच एका मुद्रा माषास्तथा तिलाः । महर्घाः श्रावणे ज्येष्ठे मेघानां च महाजलम् ॥४२॥ श्रृंगालके मालवे व उत्पानो राजविग्रहः । देशभंगाद् भयं शून्यं घृतधान्यमर्घता ॥ ४३ ॥ मेदपाटे ग्रीष्मऋतौ समर्धे धान्यमीरितम् । मरौ धान्यं घृतं तैलं महङ्घे धातवोऽन्यथा ॥ ४४ ॥ सिन्धुदेशे नागपुरे श्रीविक्रमपुरे स्थले । धान्यं मह समर्च मेदपाटे तदा भवेत् ॥४५॥ मासवयं संग्रहः स्याद् धान्यानां च ततः शुभम् । दुर्भिक्षं मासदशके मार्गरोधः प्रजाक्षयः ॥४६॥ आषाढ श्रावये वर्षा न वर्षा भाद्रपादके । अश्वरोगश्चतुष्पाद - नाशस्तीडागमः कचित् ॥४७॥ मुनिवृषभैर्वृषभगते गुरौ फलं सकलमेवमादिष्टम् । जिनवृषभध्यानबलादनला सर्वत्र सरसा स्यात् ॥४८||
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पानी बरसे ॥ ४२ ॥ शृंगाल और मालवा देशमें उत्पात और राजविग्रह हो, देशभंगसे भय, शून्यता तथा घी और धान्य की तेजी हो ॥ ४३ ॥ मेदपाटमें श्रीमऋतु सब धान्य सस्ते हों, मारवाड में धान्य वी तेल तेज हो और धातु सस्ती हों ॥ ४४ ॥ सिन्धुदेश नागपुर विक्रमपुर (उज्जयनी) इन स्थानों में धान्य भाव तेज और मेदपाटमें धान्य भाव सस्ते हो ॥४५॥ धान्यका दो मास संग्रह करनेसे अच्छा लाभ होगा, दश मास दुर्भिक्ष रहेगा, मार्गरोव (मार्गका बंत्र) और प्रजाका विनाश हो || ४६ || आषाढ श्रावण में वर्षा हो, भाद्रपद में वर्षा न हो, घोडेको रोग, पशुओं का विनाश और कहीं टीड्डीका आगमन हो || ४७ || इस प्रकार श्रेठ मुनियों ने वृषभ राशि पर गया हुआ बृहस्पतिका फल कहा है। जिनेश्वरदेवका ध्यानके प्रभाव से पृथ्वी सब जगह रसवाली हो ॥ ४८ ॥ इति वृष राशिस्थगुरु का फल ॥
"Aho Shrutgyanam"
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