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गुरुवारफलम् पश्चात् सुखं सुभिक्षं च शालिगोधूमशर्कराः । तिलतैलगुडानां च महर्वत्वं समीरितम् ॥१३॥ मञ्जिष्ठानारिकेलाणां श्वेतवस्त्रं च दन्तकाः। . कपूरलवणाज्यानां महर्घत्वं प्रजायते ॥१३६॥ पौषे क्लेशसमुत्पत्ति स्तथा फाल्गुनचैत्रयोः । मरुदेशे महापीडा दुर्भिक्षं तत्र जायते ॥१३७॥ चतुष्पदानां मरणं वैशाखज्येष्ठयोर्भवेत् । आषाढे श्रावणे धान्यं घृततैलमहर्घता ॥१३८॥ श्रावणस्योत्तरे पक्षे महावर्षा प्रजायते । घृतं समर्घ भाद्रपदे शुभावाश्चिनकार्सिको ॥१३॥ समर्धास्तिलकर्षासा-छत्रभङ्गस्ततोऽर्बुदे । मार्गशीर्षे तथा पौषे उत्पातो मरुमण्डले ॥१४०॥ ग्रीष्मे कटकसंग्राम-श्चतुष्पदमहर्घता। स्थानागपुरे दुर्भिक्षं वर्षाकाले सुभिक्षता ॥१४॥ इति कतिपय शास्त्रावीक्षणाद् गौरवेण, हो, चावल गेहूँ सक्कर तिल तेल गुड आदि महँगे हों ॥ १३५ ॥मँजीठ नारियल श्वेतवस्त्र दांत कपूर नमक बी ये महँगे हों ॥ १३६ ॥ पौष फाल्गुन और चैत्रमें क्लेश हो, मारवाडमें महापीडा और दुर्भिक्ष हो ॥१३७॥ वैशाख ज्येष्ठमें पशुओंका मरण हो, आषाढ श्रावण में धान्य बी तेल महँगे हों ॥ १३८ ।। श्रावण का उत्तरपक्ष (शुक्लपक्ष) में वर्षा अधिक हो, भादों में घी सस्ता, आश्विन कार्तिक ये दोनों मास शुभ ॥ १३६ ॥ तिल कपास सस्ते हों अर्बुद देशमें छत्रभंग हो, मार्गशीर्ष तथा पौषमें मरुदेशमें उत्पात हो ॥ १४० ॥ ग्रीष्मऋतुमें संग्राम हो. पशुओंकी तेजी, नागपुर में दुष्काल और वर्षाऋतु में सुभिक्ष हो ॥ १४१ ॥ इस तरह कइएक शास्त्रों को गौरवसे अन्वेषण करके गुरुचार का विचार स्पष्ट बोधके लिये संग्रह
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