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ज्येष्ठेऽष्टस्कन्दकैर्धान्यं लभ्यते मणमानतः । स्कन्दकैः पञ्चविंशत्या घृतं तैलं तु विंशतेः ॥७६॥ स्कन्दकैर्दशभिर्लभ्या गोधूमा मणसंमिताः । धान्यकर्पासतैलादि - रससंग्रहणं शुभम् ॥७७|| फाल्गुनेऽत्र ततो ज्येष्ठाद् लाभो द्विगुणतः परम् । गुरौ सूर्यगृहप्राप्ते सर्वत्र धार्मिकोदयः ॥ ७८ ॥ कन्याराशिस्थगुरुफलम् -
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• कन्याभोगे गुरोर्जाते मेघनामतमस्तमः । भाद्रसंवत्सरस्तत्र सप्तमासाश्च रौरवम् ॥७९॥ सतः परं सुभिक्षं स्यात् कार्त्तिकान्माधवावधि | प्राज्यसंग्रहणाद् लाभो द्विगुणो भाद्रमासजः ॥ ८० ॥ चतुष्पदानां पीडापि गोधूमाः शालिशर्कराः । तैलं माषा महर्घाणि गुडादीक्षुरसस्तथा ॥८१॥ शूद्राणामन्त्यजानां च कष्टं सौराष्ट्रमण्डले ।
मा धान्य मिले, वी पच्चीस स्कन्दोंसे और तेल वीस स्कन्दों से मिले ॥ ७६ ॥ दश स्कंद्रोंसे एक मय गेहूँ मिले, धान्य कपास और तेल आदि रस का फाल्गुन में संग्रह करना अच्छा है ||७७|| इससे जेटतक द्विगुना लाभ हो, सिंह राशिपर बृहस्पति आने से सब जगह धार्मिक कार्य हो ॥७८॥ इति सिंहराशिस्थगुरुका फल ॥
जय कन्याराशिका बृहस्पति हो तब भाद्रपदसंवत्सर कहा जाता है इसमें समस्त नामका मेघ बरसता है और सात मासं दुःख होता है ॥७६॥ इसके पीछे कार्तिकले वैशाख तक सुभिक्ष हो, इस समय भाद्रपद में संग्रह किया हुआ घी से दूना लाभ हो ॥ ८० ॥ पशुओंको पीडा, गेहूँ चावल सकर तेल उर्द गन्ने (ई ) गुड आदि महँगे हों ॥ ८१ ॥ शूद्र और अन्त्यजों को सोरठदेशमें कष्ट हो, दक्षिण में खराडवृष्टि और म्लेच्छदेशमें उत्पात हो
"Aho Shrutgyanam"