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गुरुवारफलम
(१३५) पश्चिमायां जीवसृष्टि-दुर्भिक्षं वायुमण्डले ॥१५॥ हेमरूप्यकांश्यताम्र-तिलाज्यश्रीफलादिषु। महर्षे गुडकर्पास-लवणश्वेतवनकम् ॥९६।। . . . . महिषी वृषभा घश्वाः समर्घा मध्यमण्डले । ....... तीडानां म्लेच्छलोकानां महोत्पातश्च सम्भवेत् ॥६॥ शृंगालदेशे कटकं रोगोऽश्वमहिषीषु च।। एतानि च महर्घाणि हिंगुखारिकटोपस ॥८॥ देशभङ्गोऽप्यल्पवृष्टिः स्त्रीणामपि च दुःखिता। मरौ तथा नागपुरे देशे क्लेशाकुलाः प्रजाः ॥१९॥ गोधूमचणकतुवरी युगंधरीमाषमुद्गकंगुतिलाः। ..... संग्राधास्ते मासान् पञ्च परं विक्रयाद् द्विगुणो लाभः ॥१०० धनराशिस्थगुरुफलम्
धने गुरौ हेममाली-मेघः संवत्सरस्तथा । । । न्तमें दुर्मिक्ष हो ॥ ६५ । सोना चांदी कांसी तांबा तिल घी नारियल गुड कपास लूण और श्वेतवस्त्र ये तेज हो ॥ १६ ॥ भैस बैल घोड़ा ये मध्यदेश में सस्ते हों, टीड्डी और म्लेच्छलोकोंका बड़ा उत्पात हो. ॥ १७ ॥ श्रृंगालदेशमें कटक ( सैना ) का आगमन, घोड़ाओं को और भैंसोंको रोग हो, हिंग खारिक टोपरा ये तेज भाव हों ।। ६८ ॥ देशका भंग, थोड़ी वर्षा, स्त्रियोंकों दुःख, मारवाड तथा नागपुरदेशमें प्रजा क्लेश से व्याकुल हो ।। ६६ ॥ गेहूँ चणा तुवरी जुार उर्द मूंग कंगु तिल इनका संग्रह करना उनको पांच मास पीछे बेचनेसे दूगुना लाभ होंगे ।। १०० ।। ।।इति वृश्चिकराशिस्थगुरु का फल ... .... १. जब धनराशिका बृहस्पति हो तब मार्गशीर्षवर्ष कहा जाता है. इसमें हेममाली नामका मेघ बरसता है, दिव्यवर्षा और घर घर में स्त्रियोंको पीड़ा हो.॥ १०१ ॥ पूर्वकालमै धान्य गेहूँ चावल और सकर अविक हो, क- .
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