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गुरुवारफलम् खगष्टिदक्षिणस्या-मुत्पातो म्लेच्छमण्डले ॥ ८२॥ मेदपाटे श्रृंगाले च परचक्रभयं रणः। .. . सर्पदंशो वह्निभयं मेघोऽल्पश्च रसेऽल्पता ॥ ८३ ॥ मरदेशे छत्रभङ्ग-चैत्रे वा माधवे भवेत् । गोधूमा घृततैलानि महर्घाणि समादिशेत् ॥८४॥ वस्त्रकम्पलधातूनां रखादेव समर्थता । धान्यसंग्रह आषाढ़े भाद्रे लाभश्चतुर्गुणः ॥८५॥ तुलाराशिस्थगुरुफलम्-. गुरोस्तुलायां मेघाख्यः तक्षको वत्सरोऽश्विनः। तदातिवृष्टिर्मनिष्ठा नालिकेरसमर्थताः ॥८६॥ अन्योऽन्यं राजयुद्धानि समर्घ स्वाज्यतैलयोः । मार्गशीर्षे तथा पौषे छये धान्यस्य सङ्ग्रहः ॥८७॥ लाभः स्यात् पञ्चमे मासे मार्गात प्रारभ्य चैत्रतः । बत्रभङ्गस्ततो राज-विग्रहः क्वापि मण्डले ॥८८ ॥ ॥ ८२ ॥ मेदपाट और शृंगालदेशमें शत्रुका भय और युद्ध हो, सर्पदंशका भय, अग्निका भय, थोड़ी वर्षा और रस थोड़ा हो ।। ८३ ॥ चैत्र वै. शाखमें मरुदेशमें छत्रभंग हो, गेहूँ घी और तेल आदि तेज हो ॥८४॥ वस्त्र कम्बल धातु और रत्न आदि सस्ते हों, आषाढमें धान्यका संग्रह करने से भाद्रपदमें चौगुना लाभ हो ।। ८५ ॥ इति कन्याराशि स्थगुरुका फल ।।
जब तुलाराशिका बृहस्पति हो तब आश्विनसंवत्सर कहा जाता है, इसमें तक्षक नामका मेघ बरसता है, वर्षा अधिक और मजीठ तथा नारियलका भाव सस्ता हो ।। ८६ ॥ राजाओंमें परस्पर युद्ध, धी और तेल सस्ता, मार्गशीर्ष स्था पौघमें धान्यका संग्रह करना अच्छा है ।। ८७ ॥ इसका मार्गशीर्षसे लेकर चैत्र तक पांचवें मासमें लाभ होताहै, छत्रभंग और कहीं देशमें राजविग्रह हो ॥८८ ॥ मरुदेशमें उत्पात तथा मार्गमें चोरोंका भय
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