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गुरुवारफलम
सिंहे जीवे श्रावणाख्यवत्सरे वासुकिनः । ... बहुक्षीरभृता गावो जलपूर्णा च मेदिनी ॥६९।। देवब्राह्मणपूजा स्थान्नराणां मान्यता सताम् । रोगा विवादश्वान्योऽन्यं चतुष्पदमहर्घता ॥७॥ म्लेच्छदेशे महायुद्धं छत्रभङ्गश्च विड्वरम् । . उसः क्रियते, लोकाः पश्चिमोत्तरवायुषु ॥७॥ गोधूमतिलमाषाज्य-शालीनां च महर्घता। सुवर्णरूप्यताम्रादेः प्रवालानां समर्षता ॥७२॥ सभिक्षं सर्पदंशश्च मेघोऽप्याषाढभाद्रयोः। .... श्रावणे वृष्ठिरल्पैव सुकालः कार्तिके स्मृतः ॥७३॥ सोपारीटोपरा डोडा-मजीठसुंठिखारिका । पकुलं जातिफलं कपूरं सुमहर्घकम् ॥७४॥ उष्णकाले गुडः खण्डा हिंगुमीश्री च शर्करा । महर्घमेतद् वस्तु स्याद् धान्यस्यातिसमर्थता ॥७॥ , जब सिंहका बृहस्पति हो तब श्रावणसंवत्सर कहा जाता है । इसमें वासुकी नामका मेघ वर्षता है, गौ बहुत दूध वाली हों, और पृथ्वी जलसे पूर्ण हो ॥ ६६ ॥ देवब्राह्मगोंकी पूजा और सत्पुरुषोंका सत्कार हो, रोग परस्पर कलह और पशुओंकी तेजी हो ॥ ७० ॥ म्लेच्छदेशमें महायुद्ध छत्रभंग और विप्लव हो, पश्चिमोत्तरवायु चलने से लोगोंका विनाश हो ॥ ७१ ॥ गेहूँ तिल उर्द घी और चावल ये महँगे हों तथा सोना रूपा तांबा मूंगा आदि सस्ते हों ॥ ७२ ॥ सुभिक्ष हो, सर्पदंशका भय, आ.षाढ़ और भाद्रपदमें वर्षा, श्रावण में थोड़ी वर्षा, कार्तिकमें सुकाल ॥ ७३.॥ सुपारी खोपरा मक्का मजीठ सोंठ खारिक रेशमीवस्त्र जायफल और कपूर मादि सस्ते हों ॥ ७४ ॥ ग्रीष्मऋतुमें गुड खांड हींग मीश्री सक्कर ये वस्तु तेज हों, और धान्य सस्ता हो ।। ७५ ॥ ज्येष्टमें आठ स्कन्दोंसे एक
"Aho Shrutgyanam"