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गुरुवारफलम्
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श्रृंगालदेशे चोत्पाताः क्रयाणकेषु मन्दता । महावर्षा घृतं धान्यं समर्धे च गुडस्तथा ॥ ५६ ॥ शुंठीमरिचपिप्पल्यो मञ्जिष्ठा जातिकोशलः । महर्धमेतद्वस्तु स्यात् फाल्गुने धान्यसङ्ग्रहः ॥ ५७ ॥ कर्पास लवणं गुडतिलगोधूम युगन्धरीचणकमुद्गान् । संगृह्य विक्रयक्रितस्त्रिगुणो लाभस्त्रिमासान्ते ॥ ५८ ॥ गुरुरपि मिथुनानिलीनसारस्यमवश्यतः करोति जने । व्यभिचारं चारचर्चाबलात् कचिद् देशभङ्गभयम् ॥ ५९॥ कर्कराशिस्थ गुरु फलम् -
कर्के गुरुस्तदाषाढी वत्सरस्तव जायते । पूर्वदक्षिणयोर्मेघो मध्यमः कम्बलाभिधः ॥ ६०॥ मह सर्वधान्यानां कार्त्तिके फाल्गुने तथा । पश्चिमायां सिन्धुदेशे वायव्ये चोत्तरादिशि ।। ६१ ।।
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सक्कर और धातु भी सस्ते हों ॥ ५५ ॥ शृंगालदशमें उत्पात और क रियाणा में मंदता हो, महावर्षा हो, वी धान्य और गुड सस्ते हो ॥५६॥ सोठ मिरच पीपल मंजीठ जायफल कोशल (कंकोल ) ये वस्तु महँगी हों, फाल्गुन में धान्यका संग्रह करना उचित है ॥ ५७ ॥ कपास लूंग गुड तिल गेहूँ जुमार चणा और मूंग आदि खरीद कर संग्रह करना तीन मास के पीछे बेचनेसे तीगुना लाभ हो ॥ ५८ ॥ लोकमें मिथुन राशिका गुरु भी व्यभिचार करता है. और कभी उसका चार प्रभाव से देशभंगका भय होता है ॥ ५६ ॥ इति मिथुन राशिस्यगुरुका फलं ॥
जब कर्क राशि बृहस्पति हो तंत्र आषढसंवत्सर कहा जाता है. इस में पूर्व और दक्षिणका कम्बल नामका मध्यम मेघ बरसे ॥ ६० ॥ का तिक और फाल्गुन में सब धान्यकी तेजी हो, पश्चिम में विदेश में वायव्य में और उत्तर दिशा में ॥ ६१ ॥ पशुओं का विनाश हो, मृगों को दुःख,
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