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तदा सुभटकोटीभिः प्रेतपूर्णा वसुन्धरा ॥३५॥ उदग्वीथी चरन् जीवः सुभिक्षक्षेमकारकः । मध्यमे मध्यमं चाथे मेत्रमन्येऽपि खेचराः ||३६|| एष एव किल मेयविशेषः, शेषमत्र गुरुगम्यमशेषमः । शेषमत्र गुरुवार विचार-संग्रहे भजतु जातु न कश्चित् |३७| पराशिस्थ गुरुनम् -
वृपराशौ यदो जीवो वैशाखो वत्सरस्तदा । नन्दशालो भवेन्मेवः सर्वधान्यसमर्धता ॥ ३८॥ वैशाखे आश्विने मासे स्त्रीणां रोगाश्च दन्तिनाम् । अश्वानां च महापीडा गृहे वैरं परस्परम् ॥ ३६ ॥ उत्तरस्थामनावृष्टि-दुर्भिक्ष मण्डले कचित् । पूर्वस्यां च महासौख्यं राजबुद्विविपर्ययः ||४०|| घृतं तैलं च मञ्जिष्ठा मौक्तिकं च मत्रालकम् । लबगं रक्तवस्त्रं च नारिकेलं समर्थकम् ॥४१॥
मेघमहोदय
राशि पर गुरु हो तत्र सुभिक्ष और क्षेत्र ( कल्याण ) हो मध्यम में मध्यम फल कहना इसतरह सब ग्रहों को जानना || ३६ || इस तरह मेषराशिका फल कहा; और विशेष गुरुगमसे जानना । दूसरा कोई पुरुष गुरुवार के विचारसंग्रह में कभी शंका नहीं लावें ॥ ३७ ॥ इति मेरा शिवगुरु का फल |
जब वृषराशितें गुरु हो तब वैशाखार्ष कहा जाता है । इसमें नन्दशल नामका मेव बरसे और सब धान्य सस्ते हो ॥ ३८ ॥वैशाख और आश्विने स्त्री तथा हाथियों को रोग, घोड़को महापीडा और घरों में परस्पर द्वेश हो ॥ ३६ ॥ उत्तर में अनावृष्टि और देश में कहीं दुर्भिक्ष हो, पूर्व में बड़ा मुख और राजकी बुद्धि विपर्यास हो ॥ ४० ॥ घी तेल मँजिठ मोती मूंग लूण लालपत्र और श्रीफल ये सस्ते हों ॥ ४१ ॥ श्रावण में गेहूँ चावल चगा मूंग उई और तिल ये महँगे हो, तथा ज्येश्में वर्षाका अधिक'
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