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अथ देवाधिकारः । देवः सदाभ्युदयतां रससम्पदेव,
श्रीमान्महेन्द्रमहितप्रभुमारुदेवः । पुन्नागराजदितिजैः कृतसन्निधानाद
वामेय एव भगवान् विलसन् महोभिः ॥१॥ परिणामोऽम्वुदादीनां प्रयोगाद वा स्वभावतः । द्विविधश्चागमे प्रोक्तः श्रीवीरेणाहता स्वयम् ।। २॥ आद्यो मेघकुमारादेरिवान्यः स्वीयकारणात् । तथापि प्रतियोद्धारस्तत्र देवा विराधिताः ॥३॥ तेन वर्षी विना सर्वेऽप्याराध्यास्त्रिदिवौकसः । विशेषाद् वज्रभृत्पाशी नागा भूताश्च गुह्यकाः ॥४॥ यदुक्तं श्रीभगवत्यङ्गे तृतीयशतके सप्तमोद्देशके
जैसे मेघ ग्ससंपत्ति से उदय को प्राप्त होता है, वैसे महेन्द्रों से पूजित श्री आदिनाथप्रभु तथा नरेन्द्र नागेन्द्र और असुरों ने जिनका संनिधान किया हैं ऐसे और महान् तेज से शोभायमान है ऐसे पार्श्वनाथ प्रभु सर्वदा अभ्युदय को प्राप्त हों ॥१॥ वर्षा आदि का परिणाम (भाव) प्रयोग से या स्वभाव से ये दो प्रकार के हैं, ऐसा श्री महावीर जिनने स्वयं आगम में कहा है ॥२॥ वर्ष का पहला कारण मेघकुमार आदि देवताओं के प्रयोग से होता है और दूसरा स्वाभाविक है । दूसरी स्वाभाविक है तो भी उसको विराधित देव रोकने वाले हैं ॥ ३ ॥ इस लिये यदि वर्षा न हो तो सब देवों का पूजन करना श्रेयः है । विशेष करके वज्र को धारन करने वाले इंद्र, पाश को धारन करने वाले वरुण, नागकुमार भूत और यक्ष आदि देवों का पूजन करना चाहिये ॥ ४ ॥
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