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मेघमहोदये युक्तस्तस्य पञ्चदशभिर्भागे शेषाङ्कतो व्ययः स्थादित्यर्थः । राशिबादशकस्यायो व्ययाङ्कोऽपि च योज्यते । आयेऽधिके सुभिक्षं स्याद् दुर्भिक्षमधिके व्यये ॥७॥ चतुगुणीकृत्य सलब्धमाय, मासैहृते स्यादिह मासिकायः। एवं हि संयोज्य दिनं विदध्याद आयव्ययः स्यादिति संक्रमादेः।८ विक्रमाङ्कः शकस्याङ्क-युक्तो द्विघ्नो विभाज्य च। सप्तभिस्तत्र यल्लब्धं तस्मात् फलमुदीयते ॥६॥ एके षट्के च दुर्भिक्षं सुभिक्षं भुजवेदयोः । समता रामशरयोःशुन्ये रौरवमादिशेत् ॥१०॥ कचित्संवत्सरं शाकं मीलयेत् त्रिगुणोऽघमः । पञ्चनामयुतः सप्त-विभक्तोऽस्य फलं क्रमात् ॥११॥ सुभिक्षं भुजवेदाभ्यां दुर्भिक्ष तु त्रिपञ्चके। शून्ये षट्के रौरवं स्याद् एकेन समतामता ॥१२॥ आय अधिक हो तो सुकाल और व्यय अधिक होतो दुकाल जानना ॥ ७ ॥ जो वर्ष की आय है उसको और लब्धाङ्क को मिलाकर चार गुणा करना, इसमें बारह से भाग देने से जो शेष रहे वह मर सिक आय है । इस तरह मासिक आय को तीस से भाग देने से दिन की आय हो जाती है। यह संक्रान्ति के दिन से आय व्यय का विचार करना ॥८॥ विक्रमसंवत्सर और शालिवाहन का शकसंवत्सर ये दोनों मिलाकर द्विगुणा करना, इसमें सात का भाग देना, जो शेष बचै उसका फल कहना ॥ ६ ॥ एक या छ बचै तो दुकाल, दो या चार बचै तो सुकाल, तीन या पांच बचै तो समान (मध्यम) और शून्य शेष बचै तो रौरव ( भयंकरदुःख ) हो॥ १० ॥ दूसरा पाठान्तर --संवत्सर और शक को मिलाकर त्रिगुणा करना, उसमें पांच नाम मिलाकर सात से भाग देना, जो शेष बचै उसका फल कहना !! ११ ॥ शेष दो या चार हो तो सुकाल, तीन या पांच हो तो दुष्काल, शून्य या छः होतो रौरव
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