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संवत्सराधिकार:
रौद्री तृतीया यधमा स्वरूपानुसरत्फला ॥१॥ बहुतोया महामेघा बहुसस्या च मेदिनी। बहुक्षीरता गावः प्रभवेऽब्दे वरानने ! ॥२॥ प्रभवविभवप्रमोद-प्रजापति-अंगिराः । श्रीमुख-भाष-युवाख्य-धातृनामानो वत्सराः शुभाः ॥३॥ देवैश्च विविधाकार-र्मानुषा वाजिकुञ्जराः । पीड्यन्ते नात्र सन्देहः शुक्ले संवत्सरे प्रिये ! ॥४॥ इतिवचनात् शुक्लोऽशुभः । ईश्वरसंवत्सरे
सुभिक्षं सर्वदेशेषु कर्पासस्य महर्घता। घृतं तैलं मधुमचं महर्घ स्यान्महेश्वरि ! ॥५॥
इयान विशेषः बहुधान्यसंवत्सरे सुभिक्षं निरुपद्रवम् । प्रमाथिनि दुर्भिक्ष, राष्ट्रभङ्गः, तस्करपीडा, विग्रहः । विक्रमे शुभं, मर्वधान्यनिष्पत्तिः, लवणं मधु मद्यं च समघ । वृषभनाकहा है-प्रथमा ब्राह्मी, दूसरी वैष्णवी और तीसरी रौद्री। ये तीन साठ संवत्सर की वीशतिका ( वीसी) हैं, वे अपने नामसदृश फलदायक हैं ॥१॥ हे श्रेष्ठमुखवाली प्रभववर्ष में पृथ्वी बहुत जलवाली, बहुत वर्षावाली और बहुत धान्यवाली हो । गौएं बहुत घी दूध देनेवाली हों ।। २ ॥ प्रभव, विभव, प्रमोद, प्रजापति, अंगिरा, श्रीमुख, भाव, युवा और धातृ ये नव वर्ष शुभ हैं ॥ ३ ॥ हे प्रिये ! शुक्लवर्ष में विविध आकार वाले देवों से हाथी और वोड़े वाले मनुष्य पीडित होते हैं, इसमें सन्देह नहीं ॥ ४ ॥ हे महेश्वरि ! शुक्लवर्ष में अशुभ । ईश्वरवर्ष में सब देश में सुकाल हो और कपास घी तैल मधु
और मद्य महँगे हों ॥ ५ ॥ बहुधान्यवर्ष में सुकाल हो और जगत् उपद्रव रहित हो । प्रमाथी वर्ष में दुष्काल, देशभङ्ग, चोरों से दुःख और विग्रह हो । विक्रमवर्ष में शुभ हो , सब तरह के धान्य पैदा हों, लूण (नमक) मधु और मद्य सस्ते हों । हे सुलोचने ! वृषभवर्ष में कोद्रवा ( कोदों)
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