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महोदये
प्रभवनाम संवत्सरे ब्रह्मास्वामी, चैत्रो वैशाखश्च मन्दः, समस्त वस्तुसमता इत्यर्थः; ज्येष्ठादयो मासास्त्रयस्तत्र धा न्य महता, गोधूमयुगं वरमुद्रादीनां महर्चता, भाद्रपदोऽपि शुभः आश्विनश्च क्वचिन्मयतापि रोगपीडा महती, सर्वक्रयाणकं महम् ॥ १॥ विभवे विष्णुः स्वामी, रोगव्याप्तिः पृथिव्यां नागपुरीदेव गिरिदुर्ग भङ्गः, तिलङ्गमगधचीनदेशे महघेता, उच्चमुलतानस्थले महाविग्रहः, अन्यत्र समता, चैत्रादिमासास्त्रयो महार्घा आषाढादित्रये मेघवृष्टिः, आश्विने सर्वरसमहघेता, ततो मेघबाहुल्यं, कार्तिकादयो मासाः पञ्च तेषु सर्ववस्तुमहर्षता गोधूमसमता ||२|| शुक्ले रुद्रः स्वामी, छत्रभङ्गो म्लेच्छदेशेषु मन्त्रिणो राज्यं, चैत्रादिमासत्रयं समर्धम्, आषाढादिमासत्रये महामेघः, आश्विने जनरोगा, अन्नघृतं समर्धम्, अको मैं कहता हूँ ॥ ३ ॥
प्रभवनाम संवत्सरका स्वामी ब्रह्मा है, चैत्र वैशाखमें समस्त वस्तुओं का भाव मंडा रहे, ज्येष्ठादि तीनमास धान्यकी महता, गेहुँ मूंग, जुआर आदिक महता, भाद्रपदभी महर्वता और शुभ हो, आश्विनमें कभी २ महता, अधिक रोग पीडा और सब क्रयाणकवस्तुओंका भाव तेज हो ॥ १ ॥ विभववर्षका स्वामी विष्णु है, पृथ्वीपर रोग व्याप्ति, नागपुर देवगिरिमें दुर्गभंग हो, तिलङ्ग मगच और चीन देशमें धान्य महँगे हों, मुलतान ने महावित हो, अन्यत्र भाव समान रहे, चैत्रादि तीन मास महँगा हो, आपादादि तीन मास मेष हो, आश्विन में समस्त रसों का भाव तेज हो, मेच बहुत बरसे, कार्तिक आदि पांच मास सब वस्तुके भाव तेज हो और गेहुँका भाव समान रहै || २ || शुत्र्ष स्वामी रुद्र है, म्लेच्छदेशमें छत्रभंग हो और मन्त्रयोंका राज्य हो, चैत्रादि तो । मास समान भाव रहे, आषाढादि तीन मास बड़ीवर्षा हो, आम्पिनमें मनुष्यों को रोग, अन्न तथा श्री समान और दूसरी
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"Aho Shrutgyanam"
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